आखिर क्या होता है मैच्योर हो जाना?
उम्र का कौन सा पड़ाव ये तय करता है कि अब मैच्योर हो गए हो तुम
क्या लाइफ में सीरियस हो जाना मैच्योर होने की निशानी है
या फिर हंसते-खेलते अपनी ज़िम्मेदारियों को निभाना मैच्योरिटी है
क्या किसी को शादी के बंधन में बांध देना उसके मैच्योर होने की उम्मीद है
या फिर 20-21 साल की उम्र में पिता का साया सिर से हट जाना और फिर अपनी ख़्वाहिशों व शौक को किनारे कर अपने परिवार का भरण-पोषण करना मैच्योरिटी है।
आखिर क्या है मैच्योर होना?
30 की उम्र पार करना मैच्योर होने का पैमाना है
या फिर माता-पिता बन जाना खुद ब खुद मैच्योर होने का बहाना है।
दूसरों की बातों को दिल से न लगाना मैच्योर होना है या फिर सालों-साल तक एक ही बात को लेकर अपनों से नाराज़ रहना मैच्योरिटी है।
ज़िन्दगी के अनुभव मैच्योर होना सिखाते हैं या फिर बड़ी-बड़ी बातें करना मैच्योरिटी है।
समय के थपेड़ों से शांत हो जाना मैच्योर होने की निशानी है
या फिर हर कष्ट को ज़िंदादिली से पार करना मैच्योरिटी है।
आखिर क्या है मैच्योर होना?
कौन तय करता है कि हम मैच्योर हैं
खुद को समझ लेना मैच्योरिटी है या फिर दूसरों की आँखें पढ़ लेना मैच्योर होना है।
हर इंसान खुद की नज़र में मैच्योर होता है, कई मामलों में सामने वाला उसे बचकाना लगता है फिर चाहे उसकी उम्र 40 पार ही क्यों न हो।
हर बात पर दूसरों की बुराई करना मैच्योरिटी है या फिर अपनी बुराई सुनकर भी उसे इग्नोर करना बड़प्पन है।
अपनों से ही उम्मीद खत्म कर लेना मैच्योर होना है या फिर खुद में ही खुशी तलाश लेना मैच्योरिटी है...
आखिर क्या है मैच्योर होना...
और क्यों इतना ज़रूरी है मैच्योर होना...
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