रविवार, 28 जनवरी 2018

मेरा ‘’हैप्पी वाला बर्थडे’’


एक हैप्पी वाला बर्थडे क्या होता है? पूरे दिन घूमना, मस्ती करना और शाम को दोस्तों व परिवार संग जम कर पार्टी करना या फिर शहर से कहीं दूर घूम आना. मेरे साथ ऐसा कुछ भी नहीं हुआ, फिर भी मेरा ये बर्थडे सबसे खास रहा। एकदम हैप्पी वाला बर्थडे। कहीं गुनगुनी धूप में घंटो बैठकर पतिदेव के संग बातें की तो कहीं सड़क किनारे गरम-गरम मैगी और ऑमलेट के मज़े लिए. उस दिन एक बात तो अच्छी तरह समझ आ गई, जिस दिन को प्लान नहीं किया जाता वही दिन सबसे अच्छा बीतता है। क्यूंकि उसमें हमे पता नहीं होता कि आगे क्या होने वाला है. जानती हूँ पोस्ट डालने में थोड़ी देर हो गयी पर कहते हैं न...देर आये पर दुरुस्त आये.  
वैसे तो हमारा प्लान कहीं और घूमने का था. पर भूख लगी तो लंच करने मंडी हाउस उतर गए. मंडी हाउस में त्रिवेणी संगम मेरी फवरेट जगह में से एक है. त्रिवेणी संगम के ओपन थिएटर में गुनगुनी धूप का आनंद लेते हुए कब हमारा नंबर आ गया पता ही नहीं चला और बस लंच करने के बाद वहीँ हमारा मन डोल गया और हमने आगे का प्लान कैंसिल कर मंडी हाउस में पैदल ही तफ़री मारने की सोच ली. उस दिन हम मंडी हाउस की हर सड़क, हर गली घूमे. एक अलग ही नशा है वहां का. सड़क किनारे बैठे गिटार बजाते लोग हों या स्केचिंग करते लोग. तो कहीं बीच पार्क में यूँ ही प्ले की प्रैक्टिस करते हुए अपनी ही धुन में कई लोग. यहाँ सब अनोखे हैं. एकदम अलग ही दुनिया है यहाँ की. कला और प्रतिभा का अनोखा संगम.
वहीँ तफ़री मारते हुए दीवारों पर हमें बहुत से आने वाले प्लेज़ की होर्डिंग्स भी देखने को मिली. जिनमें से फ़रवरी में आने वाले दो शो देखने तो हमने अभी से डिसाइड कर लिए. खैर वहां जो सबसे क्रिएटिव होर्डिंग लगी, वो थी ‘’हजामत’’ की. जैसा की नाम से ही साफ़ है कि ये किसी नाई से सम्बंधित कहानी होगी. इसीलिए लगाने वाले ने इसकी होर्डिंग भी शीशे की लगाई. जो कि अपने आप में काफ़ी इनोवेटिव थी. उस दिन वहां घूमते हुए हम ललित कला अकादमी में लगी आर्ट एक्जीबिशन में भी गए. बाकी लोगों का तो नहीं पता लेकिन  मैंने इतनी अच्छी आर्ट एक्जीबिशन पहली बार देखी थी.
मेरे लिए ये सारे अनुभव एकदम नए थे. हो सकता है कि मुझे दिल्ली शहर से प्यार करने में अभी कुछ और वक़्त लग जाये लेकिन लग रहा है मुझे मंडी हाउस से प्यार ज़रूर हो चुका है. एक अलग ही दुनिया बसती है यहाँ. जिसे हम दोनों ही एन्जॉय करते हैं. खैर, यहाँ सबसे ज्यादा अगर किसी चीज़ को मिस किया तो वो थी साइकिलिंग. पूरा दिन मंडी हाउस में बिताकर यहाँ से बहुत सी अच्छी यादें लेकर मैं और मेरे पतिदेव वापस घर की ओर रवाना हो गए. इस वादे के साथ कि अगली बार आएंगे तो साइकिलिंग ज़रूर करेंगे. और पूरा मंडी हाउस साइकिल से घूमकर इंडिया गेट तक जायेंगे. तो हुआ न ये मेरा ‘’हैप्पी वाला बर्थडे’’. 

शनिवार, 20 जनवरी 2018

गोरे रंग पे न इतना ग़ुमान कर


आजकल टीवी में एक नई क्रीम का एड रहा है। जिसमें लड़कियों को गोरा नहीं बल्कि प्रिटी बनाने पर ज़ोर दिया जाता है। इस एड में गोरी, सांवली, गेहुंई काले कॉम्प्लेक्शन की लड़कियों को दिखाया जा रहा है जिन्हें अपने ओरिजनल कॉम्प्लेक्शन पर गर्व है। यह क्रीम मार्केट में बिकेगी या नहीं ये तो समय बताएगा। लेकिन यह एड एक सीधा कटाक्ष है, उन फेयरनेस क्रीम की कंपनियों पर जो चीख-चीख कर लड़कियों को सिर्फ हफ्ते दो हफ्ते में गोरा बनाने का ढिंढोरा पीटती हैं।

दरअसल गलती इन कंपनियों की नहीं बल्कि गोरेपन के पीछे पागल हो चुकी उस भारतीय मानसिकता का है, जो लड़कों को तो हर रूप में अपना लेगी लेकिन लड़की उन्हें गोरी ही चाहिए, एकदम दूध से धुली हुई। यकीन नहीं होता तो किसी भी अखबार का मैट्रीमोनियल पेज खोल कर देख लीजिए। सभी को घरेलू, सुशील और गोरीबहु चाहिए। अपना लड़का चाहे उल्टा तवा हो पर बहू तो गोरी ही घर आनी चाहिए।

हमारा बॉलीवुड भी इस गोरेपन के पीछे कुछ कम ऑब्सेस्ड नहीं है। सबको सिल्वर स्क्रीन पर गोरी हिरोइन ही देखनी है। यहां तक की रेखा, काजोल, शिल्पा शेट्टी और प्रियंका चोपड़ा जैसी डार्क कॉम्प्लेक्शन की हिरोइनों ने भी वक्त के साथ स्किन लाइटनिंग ट्रीटमेंट कराकर अपने रंग को बदल लिया। जो हिरोइनें इससे चूक गई उन्हें गोरे रंग के पीछे भागने वाले बॉलीवुड के दीवानों ने ज़्यादा दिन तक इंडस्ट्री में टिकने नहीं दिया। भले ही उनकी एक्टिंग अव्वल दर्जे की ही क्यों हो। इस लिस्ट में नंदिता दास, कोंकणा सेन शर्मा, मुग्धा गोड्से जैसे नाम सबसे ऊपर आते हैं। हाल ही में, बिग बॉस में भी शिल्पा शिंदे घर की सांवली लड़कियों के ऊपर कटाक्ष करते दिखाई दीं थीं।

गोरेपन को लेकर लोगों के इसी ऑब्सेशन और पागलपन का फायदा उठाती हैं फेयरक्रीम बेचने वाली कंपनियां। जो पहले से ही झक गोरी हिरोइन को अपने एड में लेकर गोरेपन की ज़रूरत को बेचती हैं। वे लड़कियों के दिमाग में ये बात बैठा देती हैं कि जब वो गोरी होंगी तभी उन्हें कोई पसंद करेगा जबकि सच्चाई इससे अलग ही होती है।

क्या आपने कभी बिपाशा बसु, कोंकणा सेन शर्मा या फिर अन्य डार्क कॉम्प्लेक्शन की हिरोइनों को फेयरनेस क्रीम का एड करते हुए देखा है। यहीं नहीं टीवी पर दिनभर टपकने वाले इन एड्स में लड़कियों को तभी सक्सेसफुल दिखाते हैं जब वो गोरी होती हैं। यानी गोरा रंग नहीं तो सक्सेज़ नहीं। टैलेंट जाए भाड़ में, उसे कौन पूछता है।

आप किसी भी ऑफिस के इंवेट में जाइए, चुन-चुन कर ऑफिस की गोरी-चिट्टी लड़कियों को इंवेट का महत्वपूर्ण हिस्सा बना दिया जाता है। उनका वहां कोई काम भले ही हो पर भाई, लोगों को तो ग्लैमर ही चाहिए और ग्लैमर लाती हैं यहीं गोरी लड़कियां।

ऐसा नहीं हैं कि गोरापन या गोरी लड़कियां बुरी होती हैं। मगर उनके आगे बाकी कॉम्प्लेक्शन की लड़कियों को इग्नोर करना एक हद तक सही नहीं है। हर रंग का सम्मान होना चाहिए। क्योंकि सुंदरता सिर्फ गोरेपन तक ही सीमित नहीं होती। सुंदरता के मायने हर किसी की नज़र में अलग- अलग होते हैं। किसी के लिए तन सुंदर होना मायने रखता है तो किसी के लिए मन की सुंदरता ज़्यादा महत्वपूर्ण होती है। हम जैसे हैं हमें उसी में खुश रहना चाहिए। ठीक उस नई क्रीम के एड की तरह, हर लड़की को अपने कॉम्प्लेक्शन पर गर्व होना चाहिए।