सोमवार, 25 सितंबर 2017

फिर से...


फिर एक सुबह जीना चाहती हूँ 
तेरे प्यार में डूबकर,
फिर एक दिन जीना चाहती हूँ 
तुझसे मिलके छुपकर, 
फिर एक शाम जीना चाहती हूँ  
छत के सिरहाने बैठकर,
फिर एक रात जीना चाहती हूँ 
बातों में काटकर,
फिर एक मुलाक़ात जीना चाहती हूँ 
अजनबी बनकर 

शनिवार, 23 सितंबर 2017

थिरकते ख़्वाब


ख़्वाबों की एक दुनिया है
इस दुनिया में कई ख़्वाब हैं
करते हैं हमसे बातें 
ये अरमानों की वो किताब हैं,
ख़्वाबों को कोई तस्वीरों मैं कैसे क़ैद करे 
ये तो उड़ते हैं मन के आँगन में 
लब्ज़ बना कर ख्वाबों को कोई कैसे बयां करे,
हर ख़्वाब की ऊंची है बोली
चुकानी पड़ती है जिनकी कीमत ऊंची,
अजब हैं कायदे दुनिया के 
कोशिश करते हैं यहां सब 
ख़्वाबों को मिट्टी में मिलाने 
फ़िर भी चलते रहते हैं हम
ख़ुद के कदम दुनिया से मिलाने,
जो ख़्वाब देखते हैं बंद आंखों से
उन्हें याद रखने की कोशिश करते नहीं 
पर जो ख़्वाब देखते हैं खुली आंखों से
उन्हें खुद से जुदा होने देते नहीं,
मुठ्ठी में बंद ख़्वाबों को कर दिया है आज़ाद
फर्क नहीं पड़ता हमें अब दिन हो या रात 
हमें तो बस पूरे करने हैं अपने "थिरकते ख़्वाब"

शुक्रवार, 22 सितंबर 2017

ज़िन्दगी




ज़िन्दगी के सफ़र पर, नई राहों से मुलाकात हुई
रुख़ जो किया उनकी तरफ़ पहचान उनसे बनती गई 
एक सिलसिला सा बनता गया यादों का 
हर याद मुझमें अपने निशान छोड़ती गई

"ज़िन्दगी", कुछ भी लिखने के लिए यह हमेशा ही मेरी फेवरेट रही है. क्यूंकि इसमें कई रंग समाये हैं. इस एक शब्द में कई अक्षर उभर कर सामने आते हैं. इसमें कभी उतार-चढ़ाव हैं तो कभी ठहराव है. कुछ मीठी यादें हैं तो कुछ कभी न भूलने वाले पल हैं. कुछ गलतियां हैं तो कुछ सबक सीखा देने वाले लम्हें भी हैं. कभी ख़ुशी तो कभी ग़म है. कभी घना अँधेरा है तो कभी उजली रौशनी है. इसमें अनमोल रिश्ते हैं तो दगा देने वाले लोग भी हैं. यह ठोकर देती है तो दुलार कर उठती भी है. 
इसकी सबसे ख़ास बात यह होती है कि यह कभी भी एक सामान नहीं होती। सबकी अलग-अलग होती है लेकिन किसी को भी अपनी नहीं बल्कि दूसरों की अच्छी लगती है. "ज़िन्दगी" होती ही कुछ ऐसी है.