सोमवार, 25 सितंबर 2017

फिर से...


फिर एक सुबह जीना चाहती हूँ 
तेरे प्यार में डूबकर,
फिर एक दिन जीना चाहती हूँ 
तुझसे मिलके छुपकर, 
फिर एक शाम जीना चाहती हूँ  
छत के सिरहाने बैठकर,
फिर एक रात जीना चाहती हूँ 
बातों में काटकर,
फिर एक मुलाक़ात जीना चाहती हूँ 
अजनबी बनकर 

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