शनिवार, 26 सितंबर 2020

मदरहुड नहीं फादरहुड कहिए जनाब...


प्रेगनेंसी एक बेहद खूबसूरत सफर है। अगर आपको लगता है ये जर्नी अकेले एक मां की है तो आप बिलकुल गलत है। इस सफर के दौरान एक पिता भी कई सारे उतार-चढ़ाव और इमोशन्स से होकर गुजरता है। आखिर अपनी पार्टनर की बॉडी में होने वाले छोटे-बड़े बदलावों का साक्षी सबसे पहले और अकेला वही तो होता है। 

प्रेगनेंट लेडी कितनी आसानी से अपने मूड स्विंग्स, चिड़चिड़ापन सब हस्बैंड पर उतार देती है... और वो, बिना किसी विरोध के आपको और बच्चे को कोई नुकसान न हो ये सोचकर सब सहते रहते हैं। 

अगर आप घर से दूर अपने पार्टनर के साथ रह रही हैं, तो इस बात को अच्छी तरह समझ भी रही होंगी और महसूस भी कर रही होंगी। साथ ही अपने पार्टनर के योगदान को सराह भी रही होंगी।

उस समय घरवालों से दूर हमारा पार्टनर ही तो हमारी मां-पिता, बहन, फ्रेंड सब होता है। ज़रूरत पड़ने पर वे पति का प्यार... और मां का दुलार भी देते हैं। 

9 महीने के लंबे सफर में होने वाली मां की परेशानियां तो सभी समझ लेते हैं, लेकिन उनके मन मे क्या चल रहा होता है, वो हर दिन कैसा महसूस कर रहे हैं इस बात की तरफ तो किसी का ध्यान जाता भी नहीं। 

वो ऑफिस में मीटिंग्स के समय भी हमारी चिंता कर रहे होते हैं, हमनें मेडिसिन ली या नहीं, खाना और फ्रूट्स समय पर खाये या नहीं बस यही सब सोचते रहते हैं। इस दौरान उन्हें बच्चे के साथ हमारी भी पूरी चिंता सता रही होती है।
 
जिस दिन वो ऑफिस से जल्दी नहीं आ पाते तो गिल्ट से भर जाते हैं, हम किसी दर्द से गुज़र रहे हैं तो एक बच्चे की तरह हमारी केयर करते हैं। ऑफिस से थक कर आने के बाद भी हमारा मनपसंद खाना बनाते हैं। ... और भी बहुत कुछ...

सच में इन 9 महीनों में सिर्फ हम औरतें ही नहीं मर्द भी कई इमोशन्स से होकर गुज़रते हैं। #fatherhoodmatters

ब्रेस्ट फीडिंग- मेरा अनुभव


ब्रेस्ट फीडिंग (स्तनपान) को लेकर बहुत पहले रेडियो पर एक ऐड सुना था, बच्चे को मां का पहला पीला गाढ़ा दूध ही पिलाएं। तब से ही लगता कि मां का दूध तो बच्चा पैदा होते ही आना शुरू हो जाता होगा।

सिज़ेरियन डिलीवरी के बाद जब खुद मां बनी, तो पता चला कि मेरे ब्रेस्ट में मिल्क आ ही नहीं रहा। इसके चलते पहले दिन से बेबी को ऊपर का दूध पिलाना पड़ा। डॉक्टर्स ने बताया कि ऑपरेशन के बाद ये आम है, 2-3 दिन तक मिल्क नहीं बनता।
बीच में कुछ मिल्क बना ज़रूर लेकिन तब बेबी उसे पीना नहीं सीख पा रहा था। 3-4 दिन में वो भी आना बंद हो गया। इस वजह से जब-जब बेबी को पाउडर मिल्क पिलाना पड़ता, खुद पर गुस्सा आता, बिना बात के रोना भी आता... भूख लगनी बंद हो गई, किसी भी काम में मन लगना भी बंद हो गया। नेट पर सर्च किया तो पता चला ये सब 'बेबी ब्लूज़' के लक्षण होते हैं, जो बाद में पोस्टपार्टम डिप्रेशन में बदल जाते हैं। मगर खुद को इसके पीछे का असली कारण पता था।
मिल्क बनने लगे इसके लिए जिसने-जिसने जो बताया, वो किया। जो खा सकते थे खाया, हाल ये कि कोई जहर पीने को बोले तो भी पी लें। ऊपर वाले कि मेहरबानी से समय के साथ 8-10 दिन में दूध बनने लगा और मेरा बेबी ब्रेस्टफीड भी करने लगा। तब कहीं जाकर मैंने राहत की सांस ली।
इस बीच मैंने अपनी बहनों, भाभियों और मां बन चुकी दोस्तों से इस बारे में बात करनी शुरू की। पता चला, मैं अकेली नहीं थी, जो इस समस्या से गुज़र रही थी। इनमें से कई तो अपने बच्चों को ब्रेस्ट फीड करा ही नहीं पाईं। उनके बच्चों ने हमेशा पाउडर मिल्क ही पिया।
मेरी डॉक्टर ने बताया था कि जिस तरह गाय को कभी दूध न बनने की समस्या नहीं होती ठीक उसी तरह मां बनने के बाद एक औरत भी नहीं बोल सकती कि उसे दूध नहीं बन रहा। ये प्रकृति का नियम है। बस हमें हार नहीं माननी है और लगातार कोशिश करनी है। मेरी कोशिश सफल हुई, उम्मीद है सबकी हो जाएगी।

दर्द भी दोस्त बन जाता है

दर्द जब हद से बढ़ जाता है
तो दर्द भी अपना दोस्त बन जाता है। 
मुश्किलें यूं ही नहीं आती ज़िंदगी में 
हर मुश्किल में एक सबक छुपा होता है।
आज खुशियां और ग़म एक साथ मिल बैठे हैं
अपने चेहरे की मासूम मुस्कान से 
वो हर ग़म को भुला देता है। 
वक़्त मुश्किल है तो क्या हुआ, 
वक़्त मुश्किल है तो क्या हुआ। 
उसे फिर देखने की आस ने ही तो हौसला बढ़ा रखा है। 
वो जब देखता है मुझे चमकती आंखों से
मानो हर ग़म को धूल चटा देता है। 
पल भर में उसकी खिलखिलाहट से 
घर का कोना-कोना गूंज जाता है।
दर्द जब हद से बढ़ जाता है
तो दर्द भी अपना दोस्त बन जाता है।