बुधवार, 6 अगस्त 2014

ऐ हवा तू यूँ छेड़ न हमें...




 
हवाओं ने दोस्ती कर ली आज हमसे...

फिज़ाओं ने संगती कर ली आज हमसे...

कुछ कह रही है मानो छू के हमें...

कुछ गुनगुनाने की गुज़ारिश कर रही है आज हमसे...

ऐ हवा तू यूँ छेड़ न हमें...

तेरे छूने से याद किसी की आती है हमें...

हम तो यूँ ही छत पर मिलने आये थे तुझसे...

तेरी अठखेलियों में शामिल होने,

कुछ अपनी सुनाने, कुछ तेरी सुनने...

पर तेरी इन नादान शैतानियों ने...

यादों के सफ़र को ताज़ा कर दिया...

निगाहों में बंद झलक को फिर से छलका दिया...

बस अब इतनी सी ख्वाहिश और है...

बह चलूँ साथ तेरे मैं भी...

बाहें फ़ैला कर उड़ चलूँ साथ तेरे मैं भी...

तेरी अठखेलियों में शामिल हो जाऊं मैं भी...