बॉलीवुड, एक ऐसी दुनिया जो मुंबई शहर यानि माया नगरी में रची-बसी है। अपनी शुरुआत से लेकर अब तक बॉलीवुड ने कई बड़ी फ़िल्में, बड़े स्टार्स और बड़े एक्टर्स दिए हैं।
यहां स्टार्स और एक्टर्स का ज़िक्र अलग-अलग करना इसलिए ज़रूरी है क्योंकि यहीं से जन्म हुआ है एक शब्द का, जिसका नाम है 'नेपोटिज़्म'। कहते हैं डॉक्टर की संतान डॉक्टर, नेता का बेटा नेता और इंजिनियर की संतान इंजिनियर ही बनती है। सेना में पिता के भर्ती होते ही उसका बेटा भी देश के लिए अपनी जान देने के सपने देखने लगता है। मगर जब एक स्टार किड यानि एक्टर का बच्चा भी एक्टर बनने की सोचने लगता है तो यहां आकार लेता है 'नेपोटिज़्म'।
क्यों छिड़ी बॉलीवुड में नेपोटिज़्म पर बहस?
बॉलीवुड के गलियारों में नेपोटिज़्म पर सुगबुगाहट तो कई बार हुई। एक्ट्रेस कंगना रनौत ने खुलकर इस बारे में कई सवाल भी खड़े किये। मगर बॉलीवुड व आम जनता के बीच ये आवाज़ तब बुलंद हुई, जब साल 2020 में एक्टर सुशांत सिंह राजपूत के अकस्मात निधन की खबर सामने आई।
सुशांत सिंह की मौत ने फैंस के साथ बॉलीवुड के तमाम लोगों को भी सदमें में डाल दिया। लोगों का कहना था कि धर्मा प्रोडक्शन सहित कई बड़े प्रोडक्शन व फिल्मों से बाहर किये जाने की वजह से उन्होंने अपना जीवन समाप्त कर लिया। इसके बाद नेपोटिज़्म पर एक बड़ी बहस छिड़ गई, जिसमें सबसे बड़ा रोल निभाया सोशल मीडिया ने।
ऐसा कहा जाने लगा कि नेपोटिज़्म की वजह से फिल्म इंडस्ट्री में बाहर के एक्टर्स अपनी जगह नहीं बना पाते और सारे बड़े बैनर या फिर फ़िल्में स्टार किड्स की झोली में चली जाती हैं। सुशांत सिंह राजपूत की मौत ने इस आग को हवा दी और सोशल मीडिया पर नेपोटिज़्म का नाम लेते हुए लोगों ने करण जौहर सहित, आलिया भट्ट, सोनम कपूर, जाह्नवी कपूर, अनन्या पांडे, सारा अली खान और वरुण धवन जैसे कई एक्टर्स पर अपना निशाना साधा।
इतना ही नहीं इनकी फिल्मों पर बॉयकॉट जैसे हैशटैग भी ट्रेंड करने लगे। नेपोटिज़्म के चपेटे में कई नए स्टार किड्स भी आये, जिनमें सुहाना खान व आर्यन खान, न्यासा देवगन व शनाया कपूर जैसे कई नाम शामिल हुए।
पहले भी रह चुका है नेपोटिज़्म :
कभी सोच कर देखिएगा, बॉलीवुड में स्टार किड्स का फिल्मों में आना क्या पिछले कुछ सालों से शुरू हुआ, जवाब मिलेगा नहीं। 90 के दशक के कई एक्टर्स ने अपने माता-पिता की राह पर चलते हुए एक्टिंग का रास्ता अपनाया। इनमें सनी द्योल, बॉबी द्योल, संजय दत्त, अक्षय खन्ना, अनिल कपूर, सलमान खान, आमिर खान, अजय देवगन, काजोल, करिश्मा कपूर, और रानी मुखर्जी जैसे बड़े नाम शामिल हैं। मगर इन स्टार्स की एक्टिंग ने दर्शकों का खूब दिल भी जीता।
हालांकि इनकी मौजूदगी में ही माधुरी दीक्षित, रवीना टंडन, शिल्पा शेट्टी, अक्षय कुमार, गोविंदा, शाहरुख़ खान, मनोज बाजपाई, ओम पूरी और सुनील शेट्टी जैसे एक्टर्स ने भी बॉलीवुड में अपनी एक खास जगह बनाई।
साल 2000 और उसके बाद भी हृतिक रोशन, सोनम कपूर, ईशा द्योल, करीना कपूर, शाहिद कपूर, अभिषेक बच्चन, रणबीर कपूर, तुषार कपूर जैसे कई स्टार किड्स फिल्मों में आये। कुछ हिट हुए तो कुछ को दर्शकों ने सिरे से नकार दिया। तब भी नेपोटिज़्म के नाम पर इतना हल्ला नहीं मचा जितना कि सोशल मीडिया आने के बाद आज की जेनेरशन पर मचता है।
तो फिर अब इस पर इतनी बहस क्यों आखिर क्या मायने हैं इस शब्द ‘नेपोटिज़्म’ के। दरअसल, बॉलीवुड में पनपने वाले भाई-भतीजावाद या पक्षपात को इस शब्द से नवाज़ा गया है।
अवार्ड्स में भी नेपोटिज़्म:
समय के साथ बॉलीवुड के ऊपर ऐसे आरोप लगने लगे कि नेपोटिज़्म के चलते सिर्फ फ़िल्में ही नहीं फिल्मों के लिए मिलने वाले अवॉर्ड भी स्टार किड्स में बांटे जाते हैं और जो एक्टर सही मायने में इसका हक़दार होता है, उसे न सिर्फ दरकिनार किया जाता है बल्कि स्टेज शोज़ और चैट शोज़ में उसका मज़ाक भी उड़ाया जाता है। नेपोटिज़्म के चलते ही सुशांत सिंह राजपूत सहित राजकुमार राव, पंकज त्रिपाठी, राधिका आप्टे, अमित साध जैसे कई अंडर रेटेड और इंडस्ट्री के बाहर से आये एक्टर्स को फिल्मों में वो जगह नहीं मिलती, जिसके वो हकदार हैं।
नए एक्टर्स पर नेपोटिज़्म का असर:
इस बात में कोई शक नहीं है कि नेपोटिज़्म पर छिड़ी बहस ने कई नए एक्टर्स को इंडस्ट्री में मौका दिया है। मगर इनकी राहें इतनी भी आसान नहीं हुई हैं। हालांकि कार्तिक आर्यन, कृति सेनन, सिद्धार्थ मल्होत्रा, आयुष्मान खुराना, सिद्धांत चतुर्वेदी, विक्रांत मैसी, तापसी पन्नू, और विजय वर्मा जैसे एक्टर्स इस दौड़ में काफी हद तक आगे भी निकले हैं।
अब दर्शक स्टार से ज्यादा फिल्म के कंटेंट और एक्टर्स पर ज्यादा ध्यान देने लगे हैं। इसका ताज़ा उदाहरण आमिर खान, सलमान खान, शाहरुख़ खान, अक्षय कुमार, दीपिका पादुकोण जैसे स्टार्स की कई फ़िल्में फ्लॉप होना है। अब दर्शक फिल्म में स्टार नहीं बल्कि एक्टर देखना चाहता है। हालांकि जो स्टार अपनी एक्टिंग से दर्शकों का दिल जीत ले उसकी फिल्म दर्शक गले से भी लगाते हैं।