मंगलवार, 9 दिसंबर 2025

आखिर क्या होता है मैच्योर हो जाना?

 आखिर क्या होता है मैच्योर हो जाना?

उम्र का कौन सा पड़ाव ये तय करता है कि अब मैच्योर हो गए हो तुम

क्या लाइफ में सीरियस हो जाना मैच्योर होने की निशानी है

या फिर हंसते-खेलते अपनी ज़िम्मेदारियों को निभाना मैच्योरिटी है

क्या किसी को शादी के बंधन में बांध देना उसके मैच्योर होने की उम्मीद है

या फिर 20-21 साल की उम्र में पिता का साया सिर से हट जाना और फिर अपनी ख़्वाहिशों व शौक को किनारे कर अपने परिवार का भरण-पोषण करना मैच्योरिटी है।

आखिर क्या है मैच्योर होना?

30 की उम्र पार करना मैच्योर होने का पैमाना है 

या फिर माता-पिता बन जाना खुद ब खुद मैच्योर होने का बहाना है।

दूसरों की बातों को दिल से न लगाना मैच्योर होना है या फिर सालों-साल तक एक ही बात को लेकर अपनों से नाराज़ रहना मैच्योरिटी है।

ज़िन्दगी के अनुभव मैच्योर होना सिखाते हैं या फिर बड़ी-बड़ी बातें करना मैच्योरिटी है।

समय के थपेड़ों से शांत हो जाना मैच्योर होने की निशानी है 

या फिर हर कष्ट को ज़िंदादिली से पार करना मैच्योरिटी है।

आखिर क्या है मैच्योर होना?

कौन तय करता है कि हम मैच्योर हैं

खुद को समझ लेना मैच्योरिटी है या फिर दूसरों की आँखें पढ़ लेना मैच्योर होना है।

हर इंसान खुद की नज़र में मैच्योर होता है, कई मामलों में सामने वाला उसे बचकाना लगता है फिर चाहे उसकी उम्र 40 पार ही क्यों न हो।

हर बात पर दूसरों की बुराई करना मैच्योरिटी है या फिर अपनी बुराई सुनकर भी उसे इग्नोर करना बड़प्पन है। 

अपनों से ही उम्मीद खत्म कर लेना मैच्योर होना है या फिर खुद में ही खुशी तलाश लेना मैच्योरिटी है...

आखिर क्या है मैच्योर होना...

और क्यों इतना ज़रूरी है मैच्योर होना...

क्या है “ख़ुशी”

 ----खुशी----

समुद्र की लहरों को देखकर, जो चेहरे पर खिल आती है, वो है खुशी

गंगा किनारे बैठकर रंग-बिरंगी रौशनी से भरी नौकाओं को देखकर जो मिले, वो है खुशी

गिरते झरने की आवाज़ सुन उसकी ओर लपककर जब पहुँचों तो वो है खुशी

पुरानी यादों को याद कर जो आंखों में आंसू ले आये, वो है खुशी

अपनी पसंदीदा मूवी को सालों बाद देखकर, जो नोस्टाल्जिया होता है, वो है खुशी

दोस्तों संग बैठकर पुरानी बातों को फिर से दोहराने में जो मज़ा मिलता है, वो है खुशी

कार के शीशे से सिर निकालकर बालों को लहराने में जो हवा महसूस होती है, वो है खुशी

अपने आज से पलभर के लिए मुँह फेर कर जो थोड़ा अपने लिए जी लो, वो है खुशी

सबकुछ भूलकर जब कभी लिखने बैठती हूँ तो वो है मेरी खुशी...

-------सुपविचार-------

… तो माँ हो तुम

 Farhan’s Poetry From Zindagi Na Milegi Dobara in Toddler's MOM style-

बाल धोकर घंटो बाद अगर सुलझाने बैठती हो,

तो माँ हो तुम...

बालों को संवारने के बजाए अगर पूरा दिन मैसी बन बनाकर घूमती हो,

तो माँ हो तुम...

सुबह की एक कप चाय भी अगर बार-बार गर्म करके पीती हो, तो माँ हो तुम...

3 घंटे की मूवी अगर तीन दिन में खत्म करती हो,

तो माँ हो तुम...

बिंज वॉच का शौक रखने वाली अगर एक वेब सीरीज को हफ्ते भर में खत्म कर पाती हो,

तो माँ हो तुम..

तुम्हारा ही मोबाइल अचानक पराया हो जाये 

तो माँ हो तुम...

मैसेज सीन करके भी अगर घंटों रिप्लाय न कर पाओ तो माँ हो तुम...

यूट्यूब सजेशन राइम्स और कार्टून्स से भर जाए 

तो माँ हो तुम...

रात की नींद अगर बेसिक से लक्ज़री नीड बन जाये

तो माँ हो तुम...

बिना किसी बात के अगर घर में यूँ ही चिड़चिड़ी होकर घूमती हो, तो माँ हो तुम...

इंट्रस्टिंग चीजों से अगर तुम्हारा इंटरेस्ट खत्म हो जाये 

तो माँ हो तुम...

सूसू-पॉटी, खाना और सोना जैसी बेसिक चीज़े सिखाने में अगर तुम्हारा पूरा दिन बीत जाता है,

तो माँ हो तुम...

घूमने-फिरने के नाम से ही अगर डर लगने लगता है 

तो मुबारक हो, माँ हो तुम...

ज़ारा और मिंत्रा के बजाय अगर फर्स्ट क्राई से शॉपिंग करने लगी हो, तो माँ हो तुम...

एक टाइम का खाना खिलाने में अगर तुम्हारा एक घंटा गुज़र जाता है, तो माँ हो तुम...

वॉशरूम में समय बिताना अगर तुम्हें मी टाइम लगने लगा है, तो माँ हो तुम...

पूरा दिन अगर सिर्फ घर की सफाई में बीत जाता है, 

तो माँ हो तुम...

बच्चे का स्कूल शुरू होना अगर तुम्हारे लिए एक खुशनुमा सपना बन गया है, 

तो माँ हो तुम...

तुम्हारा पेशंस लेवल अगर पहले से कहीं ज्यादा हो गया है, तो माँ हो तुम...

-----सुपविचार-----

बॉलीवुड में नेपोटिज़्म

बॉलीवुड, एक ऐसी दुनिया जो मुंबई शहर यानि माया नगरी में रची-बसी है। अपनी शुरुआत से लेकर अब तक बॉलीवुड ने कई बड़ी फ़िल्में, बड़े स्टार्स और बड़े एक्टर्स दिए हैं। 

यहां स्टार्स और एक्टर्स का ज़िक्र अलग-अलग करना इसलिए ज़रूरी है क्योंकि यहीं से जन्म हुआ है एक शब्द का, जिसका नाम है 'नेपोटिज़्म'। कहते हैं डॉक्टर की संतान डॉक्टर, नेता का बेटा नेता और इंजिनियर की संतान इंजिनियर ही बनती है। सेना में पिता के भर्ती होते ही उसका बेटा भी देश के लिए अपनी जान देने के सपने देखने लगता है। मगर जब एक स्टार किड यानि एक्टर का बच्चा भी एक्टर बनने की सोचने लगता है तो यहां आकार लेता है 'नेपोटिज़्म'।

क्यों छिड़ी बॉलीवुड में नेपोटिज़्म पर बहस?

बॉलीवुड के गलियारों में नेपोटिज़्म पर सुगबुगाहट तो कई बार हुई। एक्ट्रेस कंगना रनौत ने खुलकर इस बारे में कई सवाल भी खड़े किये। मगर बॉलीवुड व आम जनता के बीच ये आवाज़ तब बुलंद हुई, जब साल 2020 में एक्टर सुशांत सिंह राजपूत के अकस्मात निधन की खबर सामने आई।

सुशांत सिंह की मौत ने फैंस के साथ बॉलीवुड के तमाम लोगों को भी सदमें में डाल दिया। लोगों का कहना था कि धर्मा प्रोडक्शन सहित कई बड़े प्रोडक्शन व फिल्मों से बाहर किये जाने की वजह से उन्होंने अपना जीवन समाप्त कर लिया। इसके बाद नेपोटिज़्म पर एक बड़ी बहस छिड़ गई, जिसमें सबसे बड़ा रोल निभाया सोशल मीडिया ने।

ऐसा कहा जाने लगा कि नेपोटिज़्म की वजह से फिल्म इंडस्ट्री में बाहर के एक्टर्स अपनी जगह नहीं बना पाते और सारे बड़े बैनर या फिर फ़िल्में स्टार किड्स की झोली में चली जाती हैं। सुशांत सिंह राजपूत की मौत ने इस आग को हवा दी और सोशल मीडिया पर नेपोटिज़्म का नाम लेते हुए लोगों ने करण जौहर सहित, आलिया भट्ट, सोनम कपूर, जाह्नवी कपूर, अनन्या पांडे, सारा अली खान और वरुण धवन जैसे कई एक्टर्स पर अपना निशाना साधा। 

इतना ही नहीं इनकी फिल्मों पर बॉयकॉट जैसे हैशटैग भी ट्रेंड करने लगे। नेपोटिज़्म के चपेटे में कई नए स्टार किड्स भी आये, जिनमें सुहाना खान व आर्यन खान, न्यासा देवगन व शनाया कपूर जैसे कई नाम शामिल हुए।

पहले भी रह चुका है नेपोटिज़्म :

कभी सोच कर देखिएगा, बॉलीवुड में स्टार किड्स का फिल्मों में आना क्या पिछले कुछ सालों से शुरू हुआ, जवाब मिलेगा नहीं। 90 के दशक के कई एक्टर्स ने अपने माता-पिता की राह पर चलते हुए एक्टिंग का रास्ता अपनाया। इनमें सनी द्योल, बॉबी द्योल, संजय दत्त, अक्षय खन्ना, अनिल कपूर, सलमान खान, आमिर खान, अजय देवगन, काजोल, करिश्मा कपूर, और रानी मुखर्जी जैसे बड़े नाम शामिल हैं। मगर इन स्टार्स की एक्टिंग ने दर्शकों का खूब दिल भी जीता। 

हालांकि इनकी मौजूदगी में ही माधुरी दीक्षित, रवीना टंडन, शिल्पा शेट्टी, अक्षय कुमार, गोविंदा, शाहरुख़ खान, मनोज बाजपाई, ओम पूरी और सुनील शेट्टी जैसे एक्टर्स ने भी बॉलीवुड में अपनी एक खास जगह बनाई।

साल 2000 और उसके बाद भी हृतिक रोशन, सोनम कपूर, ईशा द्योल, करीना कपूर, शाहिद कपूर, अभिषेक बच्चन, रणबीर कपूर, तुषार कपूर जैसे कई स्टार किड्स फिल्मों में आये। कुछ हिट हुए तो कुछ को दर्शकों ने सिरे से नकार दिया। तब भी नेपोटिज़्म के नाम पर इतना हल्ला नहीं मचा जितना कि सोशल मीडिया आने के बाद आज की जेनेरशन पर मचता है।   

तो फिर अब इस पर इतनी बहस क्यों आखिर क्या मायने हैं इस शब्द ‘नेपोटिज़्म’ के। दरअसल, बॉलीवुड में पनपने वाले भाई-भतीजावाद या पक्षपात को इस शब्द से नवाज़ा गया है।

अवार्ड्स में भी नेपोटिज़्म:

समय के साथ बॉलीवुड के ऊपर ऐसे आरोप लगने लगे कि नेपोटिज़्म के चलते सिर्फ फ़िल्में ही नहीं फिल्मों के लिए मिलने वाले अवॉर्ड भी स्टार किड्स में बांटे जाते हैं और जो एक्टर सही मायने में इसका हक़दार होता है, उसे न सिर्फ दरकिनार किया जाता है बल्कि स्टेज शोज़ और चैट शोज़ में उसका मज़ाक भी उड़ाया जाता है। नेपोटिज़्म के चलते ही सुशांत सिंह राजपूत सहित राजकुमार राव, पंकज त्रिपाठी, राधिका आप्टे, अमित साध जैसे कई अंडर रेटेड और इंडस्ट्री के बाहर से आये एक्टर्स को फिल्मों में वो जगह नहीं मिलती, जिसके वो हकदार हैं।

नए एक्टर्स पर नेपोटिज़्म का असर:

इस बात में कोई शक नहीं है कि नेपोटिज़्म पर छिड़ी बहस ने कई नए एक्टर्स को इंडस्ट्री में मौका दिया है। मगर इनकी राहें इतनी भी आसान नहीं हुई हैं। हालांकि कार्तिक आर्यन, कृति सेनन, सिद्धार्थ मल्होत्रा, आयुष्मान खुराना, सिद्धांत चतुर्वेदी, विक्रांत मैसी, तापसी पन्नू, और विजय वर्मा जैसे एक्टर्स इस दौड़ में काफी हद तक आगे भी निकले हैं।

अब दर्शक स्टार से ज्यादा फिल्म के कंटेंट और एक्टर्स पर ज्यादा ध्यान देने लगे हैं। इसका ताज़ा उदाहरण आमिर खान, सलमान खान, शाहरुख़ खान, अक्षय कुमार, दीपिका पादुकोण जैसे स्टार्स की कई फ़िल्में फ्लॉप होना है। अब दर्शक फिल्म में स्टार नहीं बल्कि एक्टर देखना चाहता है। हालांकि जो स्टार अपनी एक्टिंग से दर्शकों का दिल जीत ले उसकी फिल्म दर्शक गले से भी लगाते हैं।

पिता को मौक़ा तो दीजिए

 मैनें अपनी उम्र की बहुत सी माओं को ये कहते सुना है कि बच्चों के मामले में उन्हें अपने पति पर भरोसा नहीं है। वो अपने बच्चे को एक दिन के लिए भी उनके पापा के भरोसे छोड़कर कहीं नहीं जा सकतीं। पता नहीं वो उन्हें ठीक से रखेंगे या नहीं, टाइम पर खाना खिलाएंगे, सुलायेंगे या नहीं आदि। 


उन माओं के लिए मेरा इतना ही मानना है कि आप अपने पति को कुछ ज्यादा ही अंडरअस्टिमेट करती हैं। क्या पता आपकी गैर हाजरी में वो बच्चे का ख्याल आपसे ज्यादा अच्छे से रखें। आखिर वो आज के जमाने के पिता हैं, बच्चों के लिए सब कुछ करते हैं। आपको बस उनके ऊपर ट्रस्ट करना है, जैसे मैं करती हूं। 


मैं ढाई साल के आदी को उसके पापा के पास छोड़कर 2 दिन के लिए जयपुर चली गई थी। ज़रूरत पड़ी तो दोनों बच्चों को एक साथ छोड़ सकती हूं। क्योंकि मुझे पता है, वो बच्चों का ख्याल रख लेंगे। 


अब आप कहेंगे कि मेरे लिए कहना आसान है क्योंकि मेरे पति कर लेते हैं। तो मैं आपसे यही कहूंगी कि आपने तो अपने पति को कभी कुछ करने ही नहीं दिया। आप उन्हें मौका तो दीजिये। बिना मौका दिए ये सोच लिया कि वो बच्चों का ख्याल नहीं रख पाएंगे। 


मुझे याद है मेरी एक दोस्त अपनी 6 साल की बेटी को पति के साथ छोड़कर 2 दिन के लिए काम से कहीं गई थी। बहुत सोच रही थी कि पता नहीं दोनों मेरे बिना कैसे रहेंगे। मगर जब वो वापस गई तो पता चला दोनों ने उसके बिना बहुत अच्छे से मैनेज किया। अब वो बेफिक्र होकर निकल जाती है, अकेले घूमने भी। 


तो आपको बस एक कदम उठाने की ज़रूरत है। विश्वास का कदम। हर पिता बहुत काबिल होता है। अपने बच्चों के लिए जब दिनरात घटकर वो कमा सकता है, तो उन्हें पाल भी सकता है। तो उनके लिये ये सोचना कि वो बच्चों का ख्याल नहीं रख पाएंगे, आपकी एक कोरी कल्पना भर है और कुछ नहीं।


ये ज्ञान नहीं है, प्रैक्टिकल बात है, खुद के अनुभव की। आप भी आज़मा कर देखिएगा।

मुझे होना चाहिए अल्हड़ सी

 मुझे होना चाहिए अल्हड़ सी 

और तुम समझदार से 

मैं करती रहूँ नादानियाँ 

और तुम उन्हें हर बार संभालते से 

मैं शोर नदी का होती 

और तुम शांत सागर से 

मैं बक-बक की दुकान सी 

और तुम मुझे सुनते से 

मैं करती रहती हर सवाल 

और तुम जवाब देते चैट जीपीटी से 

मैं अगर ख़ुद को खोने लगती 

तुम मुझे ढूँढ लाते हर गहराई से 

गर मैं कभी शांत हो जाती

तुम अपनी बाहों में मेरी चुप्पी समेट लेते से 

——-सुपविचार——-

क्यूंकि तुम स्त्री हो…

 मुझे पता है, 

तुम बहुत हिम्मत वाली हो 

मगर अपनी शक्ति का 

इतना भी प्रदर्शन मत करो 

कि लोग तुम्हारे मौन को भी कमज़ोरी समझ लें। 


मुझे पता है, 

तुम हर काम कर सकती हो 

मगर अपने कंधों पर इतना बोझ मत लादो

कि मुस्कान का वज़न भी भारी लगने लगे।


मुझे पता है, 

तुम्हें अपने बच्चों से बहुत प्यार है

मगर इतना भी प्यार मत करो 

कि तुम उन्हें ‘पर’ देना ही भूल जाओ। 


मुझे पता है, 

तुम पहाड़ भी चढ़ सकती हो 

मगर चढ़ते समय 

अपनी रस्सी इतनी कमजोर भी मत रखना 

कि कोई तुम्हें वापस नीचे खींचने की कोशिश करे। 


मुझे पता है, 

तुम डरती नहीं किसी संकट से 

मगर संकट को इतना भी मत बढ़ा लेना 

कि वो ज़िंदगी का हिस्सा बन जाए। 


मुझे पता है, 

तुम स्त्री हो,

मगर अपने वजूद को 

इतना भी हल्का मत बना लेना 

कि ख़ुद अपनी पहचान ही भुला दो। 


क्योंकि हर बार सबको साबित करने की ज़रूरत नहीं होती,

कभी-कभी बस खुद को याद रखना ही काफ़ी होता है। 

——सुपविचार——