सोमवार, 9 अक्तूबर 2017

तेरे प्यार में हम अपना शहर छोड़ आए


तेरे प्यार में हम अपना शहर छोड़ आए
बचपन से भरा वो आँगन छोड़ आए
होती थी सुबह जहाँ आंखें मलते-मलते
माँ के आँचल में नख़रे करते-करते
ममता से भरा वो आँचल छोड़ आए
तेरे प्यार में अपना शहर छोड़ आए

जहाँ हर गली से थी पहचान मेरी
गाड़ी की रफ़्तार से होती थी बातें मेरी
कुछ दूर पर था सहेलियों का ठिकाना
हर मौके पर हो जाता था मिलना-मिलाना
सहेलियों की वो खट्टी-मीठी बातें छोड़ आए
तेरे प्यार में हम अपना शहर छोड़ आए

जहाँ होती थी शाम कभी गंगा किनारे
डूबते सूरज को निहारते थे घंटों किनारे
मिलते थे जहाँ गोलगप्पे मटर वाले 
परिवार संग लगते थे चाट के चटखारे 
हम गोलगप्पे की वो मटर छोड़ आये 
तेरे प्यार में हम अपना शहर छोड़ आए




16 टिप्‍पणियां:

  1. Waoooooooo बहुत खूब लिखा आप को ही नही बल्कि हर किसी को याद आ गयी होगी अपने वो बीते पल ।

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