क्या है ये मन,
कभी चंचल, कभी गंभीर
तो कभी सोच के सागर में
डुबकियां लगता है ये मन
कभी खुद से बिगड़ जाता है
तो कभी खुद को ही
मना लेता है ये मन
कभी चलती हैं ढेरों बातें इसके अंदर
तो कभी शांत समंदर बन जाता है ये मन
क्या है ये मन
कभी उथल पुथल में घिर जाता है
तो कभी बच्चे सा
मासूम हो जाता है ये मन
कभी बदलने को राज़ी नहीं होता
तो कभी पल भर में
बदल जाता है ये मन
आखिर क्या चलता है मन के मन में
कभी सब जान कर भी
अनजान बन जाता है
तो कभी सच का आईना
दिखा देता है ये मन
कभी सवालों का बवंडर बन उमड़ पड़ता है
तो कभी खुद ही
जवाब बन जाता है ये मन
कभी खुद ही घाव लेकर
खुद से ही मरहम लगता है ये मन
आखिर क्या है ये मन
कभी चंचल, कभी गंभीर
तो कभी सोच के सागर में
डुबकियां लगता है ये मन
कभी खुद से बिगड़ जाता है
तो कभी खुद को ही
मना लेता है ये मन
कभी चलती हैं ढेरों बातें इसके अंदर
तो कभी शांत समंदर बन जाता है ये मन
क्या है ये मन
कभी उथल पुथल में घिर जाता है
तो कभी बच्चे सा
मासूम हो जाता है ये मन
कभी बदलने को राज़ी नहीं होता
तो कभी पल भर में
बदल जाता है ये मन
आखिर क्या चलता है मन के मन में
कभी सब जान कर भी
अनजान बन जाता है
तो कभी सच का आईना
दिखा देता है ये मन
कभी सवालों का बवंडर बन उमड़ पड़ता है
तो कभी खुद ही
जवाब बन जाता है ये मन
कभी खुद ही घाव लेकर
खुद से ही मरहम लगता है ये मन
आखिर क्या है ये मन
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