सुप्रिया नितिन सिन्हा... मैंने शादी के बाद फेसबुक
पर अपना नाम बदलकर, ये नाम रखने की कभी नहीं सोची. हालाँकि फेसबुक पर मैंने अक्सर ऐसी
बहुत सी लड़कियों को देखा है जो शादी होते ही अपने नाम के आगे अपने पति का नाम जोड़
लेती है. शायद अपना प्यार जताने का ये उनका एक तरीका हो या फिर अपने पति का नाम
अपने नाम के आगे जोड़ कर उन्हें शान महसूस होती हो. या फिर वो इस वर्चुअल दुनिया को यह बताना चाहती हों की 'देख लो अब मेरी शादी हो गयी है, अब नो चांस'... खैर, एक तरह से ये उनकी पसंद का
मामला है, वो जो भी चाहे करें अपने नाम के साथ.
मुझे आज भी याद है, स्कूल में मेरी एक सहेली ने
बताया था की उसके यहाँ एक रिवाज़ है. जिसमें शादी होते ही ससुराल वाले लड़की का दूसरा
नाम रख देते है और आगे की पूरी ज़िन्दगी वो उसी नाम से जानी जाती है. उस समय भी मझे
ये बात कुछ ख़ास समझ नहीं आई थी. मैं सोचती थी कि आखिर जब माता-पिता ने अपनी बेटी
का एक प्यारा सा नाम रख दिया है तो उसे बदलना क्यों? कहीं न कहीं उसी समय मेरे बाल
मन ने यह तय कर लिया था कि चाहे कुछ भी हो जाए, मैं अपना नाम कभी भी नहीं बदलूंगी.
दादी-नानी से अक्सर ये कहते सुना है कि लड़कियां
पहले अपने पिता के नाम से जानी जाती है, शादी के बाद अपने पति के नाम से और
बच्चे होने के बाद उनके नाम से. कुल मिलकर बचपन में ही हमें ये बात घुट्टी बना कर
पिला दी जाती है कि हमारा अपना कोई अस्तित्व नहीं होता. मगर अब समय बदल गया है. अब
हर दूसरी लड़की बड़े होने पर सफ़ेद घोड़े पर सवार राजकुमार के सपने नहीं देखती बल्कि अपने
करियर को एक बेहतर दिशा में ले जाने के सपने देखती है. आज हर लड़की का सपना सिर्फ
शादी करके घर बसना नहीं होता. बल्कि उसके साथ-साथ अपने करियर को एक नई उड़ान देना
भी होता है. वो इतनी सक्षम होती है कि अपना नाम खुद बना सके और खुद अपनी पहचान
कायम रख सके.
तो फिर क्यों अपना नाम बदलें. शादी से पहले
हमने जिस नाम से अपनी पहचान बनाई है उसी नाम को क्यूँ हम शादी के बाद बदल दें. मुझे
मेरा नाम बहुत पसंद है और मैं उसे फेसबुक या फिर अपने किसी डाक्यूमेंट्स में नहीं बदलना
चाहती. ऐसा नहीं है कि मुझे दुनिया के बनाये हुए उसूलों से उल्टा चलने की आदत है.
बस मेरी सोच इस मामले में अलग है.
लोग मुझे पहले भी सुप्रिया श्रीवास्तव के नाम से ही
जानते थे और मैं चाहती हूँ की मेरी शादी के बाद भी वो मुझे इसी नाम से जाने न की
किसी और नाम से. मैं खुशकिस्मत हूँ कि मेरे इस फैसले में मेरे पति ने मेरा पूरा साथ दिया. वो खुद नहीं
चाहते कि मैं उनके नाम से जानी जाऊं बल्कि वो मेरी अपनी एक इंडिविजुअल पहचान बनते
देखना चाहते है. वो बहुत खुश होते है जब कोई उनसे मेरे ब्लॉग की या मेरी राइटिंग
की तारीफ़ करता है. आखिर मेरे हर ब्लॉग के सबसे बड़े क्रिटिक भी तो वही हैं.
ये मेरा नाम है. वो नाम जिससे बचपन में मुझे स्कूल में एडमिशन मिला. वो नाम जिससे मैंने अपना कॉलेज पूरा किया, वो नाम जो मेरी डिग्रियों से लेकर मेरे आधार कार्ड, पासपोर्ट, वोटर आईडी कार्ड और ड्राइविंग लाइसेंस तक में है, वो नाम
जिसे मैंने अपनी पहली नौकरी में भरा था. फेसबुक हो, जीमेल हो, लिंक्ड इन हो, मेरा
ब्लॉग हो या फिर कुछ और. मैं हर जगह अपने नाम का इस्तेमाल करना पसंद करती हूँ. आखिर
मेरा नाम ही तो मेरी पहचान है तो फिर शादी के बाद भला क्यूँ बदलूं मैं अपना नाम ???
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें