बारिश
से भीगा हुआ एक कोना, जिसमें बारिश की बूंदे मानो अभी-अभी बरस कर गई हों. हवा भी मानो
यूँ ही गुज़र कर निकली हो वहां से. सामने एक हरा-भरा सा बगीचा हो. जिसकी घास अभी भी
बारिश का नरम एहसास कराती हो. हाथ में एक गरमा-गरम चाय का प्याला हो. साथ में
सुर्ख सफ़ेद कागज़ों से भरी हुई एक डायरी हो और नीले रंग की स्याही में डूबी हुई मेरी
शरारती कलम. कुछ भी बेहिसाब, सोच की गहराइयों से शब्दों में डूबा हुआ लिखने के लिए
भला इससे अच्छा समां और क्या हो सकता है.
वो
अक्सर मुझसे सवाल करते हैं तुम कैसे इतनी आसानी से अपने मन की सारी बातें लिखकर
शब्दों में बयां कर देती हो? मैं कहती हूँ, ठीक उसी तरह जिस तरह आप अपने मन की
सारी बातें मुझसे बोलकर बयां कर देते हो. मेरे लब शायद मेरे प्रेम, मेरे एहसासों,
मेरे जज्बातों व मेरी भावनाओं से मेल न खा पाते हो. पर जब भी लिखने बैठती
हूँ तब वो एक-एक शब्द मेरे दिल का हाल बयां कर देता है. मेरी कलम जैसे मेरे बारे
में सब कुछ जानती है. मुझे उसको कुछ बताना भी नहीं पड़ता और वो...बस लिखती चली जाती
है. यही तो दोस्ती है हमारी. मैं उससे चाहे जितने दिन बाद मिलूं, वो मुझसे कभी
नाराज़ नहीं होती. वो हमेशा मेरे दिल की बात समझकर उसे कागज़ पर उतार देती है.
वो
मेरे अकेलेपन की साथी है. उससे मेरी दोस्ती बहुत पुरानी है. उसे मैं तब से जानती
हूँ जबसे मैंने होश संभाला है और जबसे मैंने शब्दों से खेलना सीखा है. जब कोई साथ
नहीं होता तब बस एक वही तो है जो मेरे साथ होती है. वो न जाने मेरे कितने ही
रहस्यों की साक्षी है और न जाने मेरी ज़िन्दगी के कितने पन्नों को अपनी स्याही से
भर चुकी है. वो मुझसे कभी शब्दों का हिसाब नहीं मांगती. वो तो बस मेरा हाथ पकड़
कर मुझे सोच के उस सागर में ले जाती है जो बहुत विशाल है, जिसकी कोई सीमा नहीं है,
जो हर बंधन से परे है. वो मेरी हर सोच को कागज़ पर उतार कर उसे अमर कर देती है और
मेरे अशांत मन को भी सांत्वना देकर शांत कर देती है.
उसे
बारिश से बहुत प्यार है. वो जब भी बारिश को देखती है तो मानो कागज़ पर थिरकने को
मचल उठती है. अपनी स्याही के हर रंग से वो कागज़ को जैसे डुबो देना चाहती है. बारिश
देखते ही उसकी शरारत जैसे बढ़ जाती है. वो बारिश की बूंदों से मानो खेलना चाहती हो.
उसकी यही शरारत मुझे उसकी ओर खींचती है. और मैं निकल पड़ती हूँ उसके साथ एक नए सफ़र
पर. कुछ नई यादों को शब्दों में पिरोने तो कुछ पुरानी यादों के पन्नों को फिर से
पलटने. मैं खो जाती हूँ उसके साथ अपनी ही दुनिया मैं. जहाँ... सिर्फ मैं होती हूँ
और साथ होती है, मेरी शरारती कलम.
Very nice.
जवाब देंहटाएंAmir
Thank You So Much...
हटाएंबहुत सुंदर चित्रण को सब्दों में दरसाया आप ने ।
जवाब देंहटाएंThank You Dear...
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