उफ्फ...ये पढ़ाई कब ख़त्म होगी??? किसने बना दी ये किताबें??? कब ख़त्म होंगे हर साल आने वाले ये exams??? अपने आप से ये सवाल ना जाने कितनी बार किया मैंने। हमेशा से बड़ों को देखकर लगता था की उनकी ज़िन्दगी सबसे अच्छी होती है....ना
कोई डाँटने वाला, ना कोई पढ़ाई के लिए फ़ोर्स करने वाला, ना तो उन्हें मैथ्स
की equation solve करनी पड़ती है, ना ही exams देने होते हैं और ना ही आने
वाले Results की चिंता होती है।
यही ज़िन्दगी तो चाहिये थी मुझे...
मगर आज जब मैं वही ज़िन्दगी जी रही हूँ तो क्यों सब कुछ होने के बाद भी लगता है जैसे कुछ अधूरा है... वो स्कूल कैंटीन के 2 रुपए के 5 गोलगप्पे... दोस्तों के साथ घंटों बैठकर मारे हुए गप्पे...क्लास बंक करके डांस प्रैक्टिस में लगाये हुए ठुमके...रेनी डे पर स्कूल का गोला... वो गर्मी की छुट्टियों का बेसब्री से इंतज़ार... वो कहो ना प्यार है देखने के बाद ह्रितिक के लिए प्यार...
सब कुछ आज एक सपने जैसा लगता है...
हर बात से बेफ़िक्र तब कहाँ पता था की हर कदम पर देने वाले इम्तिहान से तो हर साल आने वाले इम्तिहान ज्यादा अच्छे लगेंगे। तब ये तो पता था कि जो भी हो पास तो हो ही जाना है...पर आज ज़िन्दगी के किस इम्तिहान में फ़ेल हुए और किसमें पास यह पता लगाते-लगाते ही पूरी ज़िन्दगी बीत जाती है। तब कहाँ पता था बचपन की कीमत क्या होती है...दोस्तों के साथ समय गुज़ारने का लुत्फ़ क्या होता है...
इस भाग-दौड़ भरी ज़िन्दगी में हमे हमारे अपनों के लिए ही वक़्त निकलता पड़ता है...दोस्तों से मिलने के लिए भी उनके वक़्त का इंतज़ार करना पड़ता है...कभी कभी तो लगता है, क्यों हमारा बचपन इतनी जल्दी हमसे रूठ गया...क्यों गर्मी की छुट्टियों का इंतज़ार ख़त्म हो गया...क्यों हम इतनी जल्दी बड़े हो गये??? क्यों ???
अपने बचपन से बस यही कहना चाहती हूँ...
रूठ के हमसे कभी जब चले जाओगे तुम... ये ना सोचा था कभी इतने याद आओगे तुम…
यही ज़िन्दगी तो चाहिये थी मुझे...
मगर आज जब मैं वही ज़िन्दगी जी रही हूँ तो क्यों सब कुछ होने के बाद भी लगता है जैसे कुछ अधूरा है... वो स्कूल कैंटीन के 2 रुपए के 5 गोलगप्पे... दोस्तों के साथ घंटों बैठकर मारे हुए गप्पे...क्लास बंक करके डांस प्रैक्टिस में लगाये हुए ठुमके...रेनी डे पर स्कूल का गोला... वो गर्मी की छुट्टियों का बेसब्री से इंतज़ार... वो कहो ना प्यार है देखने के बाद ह्रितिक के लिए प्यार...
सब कुछ आज एक सपने जैसा लगता है...
हर बात से बेफ़िक्र तब कहाँ पता था की हर कदम पर देने वाले इम्तिहान से तो हर साल आने वाले इम्तिहान ज्यादा अच्छे लगेंगे। तब ये तो पता था कि जो भी हो पास तो हो ही जाना है...पर आज ज़िन्दगी के किस इम्तिहान में फ़ेल हुए और किसमें पास यह पता लगाते-लगाते ही पूरी ज़िन्दगी बीत जाती है। तब कहाँ पता था बचपन की कीमत क्या होती है...दोस्तों के साथ समय गुज़ारने का लुत्फ़ क्या होता है...
इस भाग-दौड़ भरी ज़िन्दगी में हमे हमारे अपनों के लिए ही वक़्त निकलता पड़ता है...दोस्तों से मिलने के लिए भी उनके वक़्त का इंतज़ार करना पड़ता है...कभी कभी तो लगता है, क्यों हमारा बचपन इतनी जल्दी हमसे रूठ गया...क्यों गर्मी की छुट्टियों का इंतज़ार ख़त्म हो गया...क्यों हम इतनी जल्दी बड़े हो गये??? क्यों ???
अपने बचपन से बस यही कहना चाहती हूँ...
रूठ के हमसे कभी जब चले जाओगे तुम... ये ना सोचा था कभी इतने याद आओगे तुम…
Supriya...you just said everything I had on my mind :|
जवाब देंहटाएंUffff...yeh padhayi :/
शुक्रिया...सच मैं, बचपन के दिन भुलाये नहीं भूलते...
हटाएंहिंदी ब्लॉग देख गद्द ग़द्द होगया...i really aprreciate. u work as freelancer..plzz explain what type freelancing you do
जवाब देंहटाएंसबसे पहले आपका शुक्रिया...दरअसल मुझे लिखना बहुत पसंद है...वो भी मातृभाषा में, कुछ वेबसाइट और मैगज़ीन के लिए फ्रीलांसिंग करती हूँ....
हटाएंThnx a lot Team Blog Adda...
जवाब देंहटाएं