पिछले दिनों बहुत कुछ हुआ, कहीं आसाराम बापू ने भगवान को अपना यार बना लिया तो राहुल गाँधी ने देश को मधुमक्खी का छत्ता कह डाला, जहाँ रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया के गवर्नर साहब ने बढ़ती महंगाई का दोष गाँव वालों के अच्छे खाने पर मढ़ दिया, वहीँ मोदी महिलाओं की तारीफों के पुल बांधने में लगे थे, इन सबके बीच हर मुद्दे को ठेंगा दिखाते हुए IPL अपनी ही धुन में मग्न है।
लिखने के लिए इतना कुछ है कि पहले किस पर लिखूँ यही समझ नहीं आ रहा। जिस तरह हर काम की शुरुआत भगवान के नाम से करनी चाहिए उसी तरह मैं भी पहले उन्हीं पर आती हूँ। कुछ समय पहले आसाराम ने बयान दिया था कि ''भगवान तो मेरा यार है मैं जब चाहूँ उससे कह कर बारिश करवा सकता हूँ'' बापू जी महाराष्ट्र को पानी की ज़रूरत है अपनी ज़ुबान चलाने के बजाये वहाँ अपने वर्षा रूपी बाण क्यों नहीं चलते आप।
मेरे एक जानने वाले हैं जिनके घर पर आसाराम के नाम की चालीसा पढ़ी जाती है वो भी जीते-जागते आसाराम की तस्वीर पर माला चढ़ा कर, और तस्वीर भी कैसी साक्षात् कृष्णा के अवतार में, कुछ ऐसी----
अब इस तस्वीर को देखकर ये समझना मुश्किल है की आसाराम, भगवान को अपना यार मानते हैं या ख़ुद को साक्षात् भगवान।
काला पर्स तो याद ही होगा न, जिसे हर रोज़ दोपहर 3 बजे घर की महिलाओं के साथ आदमी भी लेकर कर TV के सामने बैठ जाया करते थे इस उम्मीद में कि निर्मल बाबा के दर्शन भर से उनका पर्स रुपयों से भर जायेगा। बाज़ारों में रातोंरात काले पर्स की मांग बढ़ गयी थी, सब निर्मल बाबा की कृपा से। उनका तो अपना एक दानपत्र भी हुआ करता था जिसमे धनराशि जमा करने लिए बकायदा टीवी पर पता भी दिया जाता था। जिसके सहारे उन्होंने कई सौ करोड़ की संपत्ति भी बना ली। भक्तों द्वारा दी गई धनराशि का उपयोग कहाँ किया जाता था इसका आज तक कोई ब्यौरा सामने नहीं आया हैं।
लिखने के लिए इतना कुछ है कि पहले किस पर लिखूँ यही समझ नहीं आ रहा। जिस तरह हर काम की शुरुआत भगवान के नाम से करनी चाहिए उसी तरह मैं भी पहले उन्हीं पर आती हूँ। कुछ समय पहले आसाराम ने बयान दिया था कि ''भगवान तो मेरा यार है मैं जब चाहूँ उससे कह कर बारिश करवा सकता हूँ'' बापू जी महाराष्ट्र को पानी की ज़रूरत है अपनी ज़ुबान चलाने के बजाये वहाँ अपने वर्षा रूपी बाण क्यों नहीं चलते आप।
मेरे एक जानने वाले हैं जिनके घर पर आसाराम के नाम की चालीसा पढ़ी जाती है वो भी जीते-जागते आसाराम की तस्वीर पर माला चढ़ा कर, और तस्वीर भी कैसी साक्षात् कृष्णा के अवतार में, कुछ ऐसी----
अब इस तस्वीर को देखकर ये समझना मुश्किल है की आसाराम, भगवान को अपना यार मानते हैं या ख़ुद को साक्षात् भगवान।
काला पर्स तो याद ही होगा न, जिसे हर रोज़ दोपहर 3 बजे घर की महिलाओं के साथ आदमी भी लेकर कर TV के सामने बैठ जाया करते थे इस उम्मीद में कि निर्मल बाबा के दर्शन भर से उनका पर्स रुपयों से भर जायेगा। बाज़ारों में रातोंरात काले पर्स की मांग बढ़ गयी थी, सब निर्मल बाबा की कृपा से। उनका तो अपना एक दानपत्र भी हुआ करता था जिसमे धनराशि जमा करने लिए बकायदा टीवी पर पता भी दिया जाता था। जिसके सहारे उन्होंने कई सौ करोड़ की संपत्ति भी बना ली। भक्तों द्वारा दी गई धनराशि का उपयोग कहाँ किया जाता था इसका आज तक कोई ब्यौरा सामने नहीं आया हैं।
हाल ही में एक फिल्म आई थी, ''ओह माई गॉड'' जिसमें इन सभी मुद्दों को उठाकर लोगों की आँखों पर पड़ी पट्टी को हटाने की कोशिश की गई। फ़िल्म काबिले तारीफ़ थी, पर अपने उद्देश्य में कहा तक सफल हुई यह तो फ़िल्म देखने वालों पर ही निर्भर करता है। यहाँ तो मैंने मात्र दो नाम लिये है, समाज में ऐसे और कई साधू-संत और बाबाओं की भीड़ है जो
आये दिन लोगों की भक्ति और श्रद्धा के साथ खिलवाड़ करते है। हम जानते है वो
भगवान नहीं है फिर भी आस्था में अंधे होकर हम इनकी शरण में चले जाते है,
और ये भगवान के नाम पर धंधा चलाते हुए अपना बैंक बैलेंस बनाते है।
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