ऑस्ट्रेलिया में भारतियों पर हो रहे हमले थमने का नाम नहीं ले रहे हें. आये दिन कोई न कोई भारतीय इन हमलो का शिकार बन रहा है. कभी किसी की हत्या कर दी जाती है तो कभी किसी भारतीय को जिंदा जलाने की कोशिश की जाती है. हाल तो इतने बुरे हो गए हैं की भारतियों का वहा रहना भी मुहाल हो गया है. इन सबके बीच आखिर क्या कर रही है भारत की सरकार? क्यों अपनी आँखें बंद करके बैठी है? या फिर देखना ही नहीं चाहती वो इस तरफ. अगर मीडिया इस मुद्दे को उजागर करने क लिए सामने आती है तो उसे भी चुप कराने की कोशिश की जाती है.
विदेश मंत्री थरूर ने कितनी आसानी से ये कह दिया कि "हमलों के संवेदनशील मुद्दे पर मीडिया सयंम बरते क्यूंकि इससे दोनों देशों के संबंधों पर असर पड़ सकता है". क्या मंत्री जी को उस देश से सम्बन्ध इतने प्यारे हैं जहाँ अपने लोगों पर वार किया जा रहा है. क्या उन्हें वहा बसे भारतियों का दर्द नज़र नहीं आ रहा? उन्हें पड़ीं है तो बस अपने संबंधों की. इतनी बड़ी घटना पर इतनी हल्की प्रतिक्रिया कहाँ तक जायज़ है? आखिर सरकार इन हमलो के खिलाफ क्यों कोई ठोस कदम उठाती नज़र नहीं आ रही है? या वो और हमलों का इंतज़ार कर रही है? सिर्फ बयान दे देने से क्या सरकार की ज़िम्मेदारी खत्म हो जाती है?
हाल ही में मेलबर्न में भारतियों के विरुद्ध हुई ताज़ा घटना में एक भारतीय पर चार लोगों ने हमला कर उससे जला दिया। वहीं ऑस्ट्रेलिया इस हमले को नस्लवाद से प्रेरित मानने से ही साफ़ इनकार करता है. ऑस्ट्रेलिया सरकार तो इसके लिए भी सबूत मांग रही है. बहरहाल जो भी हो इन हमलों से ऑस्ट्रेलिया की साख पर तो असर पड़ा ही है साथ ही पूरी दुनिया को ये तो पता चल ही गया है कि खुद को एक उदार, धर्मनिरेपक्ष और लोकतान्त्रिक देश होने का ऑस्ट्रेलिया का दावा कितना खोखला है. भारतीय छात्रों पर हमले होते रहे और ऑस्ट्रलियाई सरकार उन्हें सुरक्षा देने के बुनियादी कर्त्तव्य भी नहीं निभा पायी. हर साल भारत के छात्रों से ऑस्ट्रलियाई सरकार को लगभग आठ हज़ार करोड़ रूपए हासिल होते हैं. शायद ऑस्ट्रेलिया के लोगो को इसी बात की चिंता है की कहीं उनकी नौकरी खतरे में ना पड़ जाये. भारतियों के खिलाफ उनकी यही चिंता शायद जलन क रूप में सामने आ रही है जिसका खामियाज़ा भुगतना पड़ रहा है वहा बसे भारतियों को.
गंभीर बात तो ये है की इतना सब होने क बाद भी ना तो ऑस्ट्रलियाई मीडिया और ना ही सरकार ने कोई ख़ास चिंता जताई. उससे शर्मनाक तो भारत की सरकार है, जिसने अपने नागरिकों को ऑस्ट्रेलिया जाने से रोकने के लिए कोई भी निर्देश जारी नहीं किया. याद कीजिये मुंबई पर आतंकवादी हमलों की जब ऑस्ट्रलियाई सरकार ने तुरंत ये आदेश जारी कर दिया था कि वे भारत कि यात्रा ना करे, क्या इससे भी भारत कि सरकार नींद से नहीं जागी है? भारत को भी इन हमलों के खिलाफ़ अपना कड़ा ज़ाहिर करना चाहिए. सरकार को चाहिए कि ऑस्ट्रलियाई सरकार से हमलावरों के खिलाफ़ कड़ी करवाई को गारंटी ले. साथ ही ये सुनिश्चित्त करवाए कि आगे से भारतीय छात्रों पर हमले नहीं होंगे. ऐसा होने पर कम से कम वहा बसे भारतियों को ये विश्वास हो सकेगा कि सरकार बाहर रह रहे नागरिकों कि सुरक्षा करने में सक्षम है. वैसे भी एक के बाद एक हो रहे इन हमलों से भारतियों के अन्दर इतना खौफ़ पैदा हो चुका है कि अब वो ऑस्ट्रेलिया बसने क बारे में सोच ही नहीं रहे. भारतियों का मोह अब ऑस्ट्रेलिया की तरफ से भंग हो रहा है. यही वजह है कि भारतीय छात्रों के वीज़ा के आवेदन संख्या में कमी हो रही है.
भारतीय सरकार तो कोई ठोस कदम उठती नहीं दिख रही है वहीं इसके उलट ऑस्ट्रेलिया में बसे भारतीय छात्रों के एक संगठन ने शेन वॉर्न सहित ऑस्ट्रलियाई क्रिकेट के सभी बड़े सितारों से आग्रह किया है कि वे भारतीय छात्रों पर हुए ताज़ा हमलों कि निंदा करे. अब जब भारतीय सरकार हमलों पर इतनी हल्कीप्रतिक्रिया देगी तो किसी न किसी को तो आगे आना ही पड़ेगा.
ज़रा सोचिये क्या गुज़रती होगी उन मां-बाप के दिल पर जो बड़े अरमानों के साथ अपने बच्चों को विदेश पढने भेजते है? क्या बीतती होगी उन पर जब अपने बच्चों कि पिटाई या हत्या कि खबर वो टीवी पर देखते होंगे? सरकार तो बस अपने रिश्ते सुधारने में लगी है. ऐसे में किससे करें मद्दद कि उम्मीद ?
विदेश मंत्री थरूर ने कितनी आसानी से ये कह दिया कि "हमलों के संवेदनशील मुद्दे पर मीडिया सयंम बरते क्यूंकि इससे दोनों देशों के संबंधों पर असर पड़ सकता है". क्या मंत्री जी को उस देश से सम्बन्ध इतने प्यारे हैं जहाँ अपने लोगों पर वार किया जा रहा है. क्या उन्हें वहा बसे भारतियों का दर्द नज़र नहीं आ रहा? उन्हें पड़ीं है तो बस अपने संबंधों की. इतनी बड़ी घटना पर इतनी हल्की प्रतिक्रिया कहाँ तक जायज़ है? आखिर सरकार इन हमलो के खिलाफ क्यों कोई ठोस कदम उठाती नज़र नहीं आ रही है? या वो और हमलों का इंतज़ार कर रही है? सिर्फ बयान दे देने से क्या सरकार की ज़िम्मेदारी खत्म हो जाती है?
हाल ही में मेलबर्न में भारतियों के विरुद्ध हुई ताज़ा घटना में एक भारतीय पर चार लोगों ने हमला कर उससे जला दिया। वहीं ऑस्ट्रेलिया इस हमले को नस्लवाद से प्रेरित मानने से ही साफ़ इनकार करता है. ऑस्ट्रेलिया सरकार तो इसके लिए भी सबूत मांग रही है. बहरहाल जो भी हो इन हमलों से ऑस्ट्रेलिया की साख पर तो असर पड़ा ही है साथ ही पूरी दुनिया को ये तो पता चल ही गया है कि खुद को एक उदार, धर्मनिरेपक्ष और लोकतान्त्रिक देश होने का ऑस्ट्रेलिया का दावा कितना खोखला है. भारतीय छात्रों पर हमले होते रहे और ऑस्ट्रलियाई सरकार उन्हें सुरक्षा देने के बुनियादी कर्त्तव्य भी नहीं निभा पायी. हर साल भारत के छात्रों से ऑस्ट्रलियाई सरकार को लगभग आठ हज़ार करोड़ रूपए हासिल होते हैं. शायद ऑस्ट्रेलिया के लोगो को इसी बात की चिंता है की कहीं उनकी नौकरी खतरे में ना पड़ जाये. भारतियों के खिलाफ उनकी यही चिंता शायद जलन क रूप में सामने आ रही है जिसका खामियाज़ा भुगतना पड़ रहा है वहा बसे भारतियों को.
गंभीर बात तो ये है की इतना सब होने क बाद भी ना तो ऑस्ट्रलियाई मीडिया और ना ही सरकार ने कोई ख़ास चिंता जताई. उससे शर्मनाक तो भारत की सरकार है, जिसने अपने नागरिकों को ऑस्ट्रेलिया जाने से रोकने के लिए कोई भी निर्देश जारी नहीं किया. याद कीजिये मुंबई पर आतंकवादी हमलों की जब ऑस्ट्रलियाई सरकार ने तुरंत ये आदेश जारी कर दिया था कि वे भारत कि यात्रा ना करे, क्या इससे भी भारत कि सरकार नींद से नहीं जागी है? भारत को भी इन हमलों के खिलाफ़ अपना कड़ा ज़ाहिर करना चाहिए. सरकार को चाहिए कि ऑस्ट्रलियाई सरकार से हमलावरों के खिलाफ़ कड़ी करवाई को गारंटी ले. साथ ही ये सुनिश्चित्त करवाए कि आगे से भारतीय छात्रों पर हमले नहीं होंगे. ऐसा होने पर कम से कम वहा बसे भारतियों को ये विश्वास हो सकेगा कि सरकार बाहर रह रहे नागरिकों कि सुरक्षा करने में सक्षम है. वैसे भी एक के बाद एक हो रहे इन हमलों से भारतियों के अन्दर इतना खौफ़ पैदा हो चुका है कि अब वो ऑस्ट्रेलिया बसने क बारे में सोच ही नहीं रहे. भारतियों का मोह अब ऑस्ट्रेलिया की तरफ से भंग हो रहा है. यही वजह है कि भारतीय छात्रों के वीज़ा के आवेदन संख्या में कमी हो रही है.
भारतीय सरकार तो कोई ठोस कदम उठती नहीं दिख रही है वहीं इसके उलट ऑस्ट्रेलिया में बसे भारतीय छात्रों के एक संगठन ने शेन वॉर्न सहित ऑस्ट्रलियाई क्रिकेट के सभी बड़े सितारों से आग्रह किया है कि वे भारतीय छात्रों पर हुए ताज़ा हमलों कि निंदा करे. अब जब भारतीय सरकार हमलों पर इतनी हल्कीप्रतिक्रिया देगी तो किसी न किसी को तो आगे आना ही पड़ेगा.
ज़रा सोचिये क्या गुज़रती होगी उन मां-बाप के दिल पर जो बड़े अरमानों के साथ अपने बच्चों को विदेश पढने भेजते है? क्या बीतती होगी उन पर जब अपने बच्चों कि पिटाई या हत्या कि खबर वो टीवी पर देखते होंगे? सरकार तो बस अपने रिश्ते सुधारने में लगी है. ऐसे में किससे करें मद्दद कि उम्मीद ?
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