२६ जनवरी को हम सब ६१वा गणतंत्र दिवस मानाने जा रहे है। खूब धूम के साथ गर्व से मनाया जाता है इस दिन को. भारत देश, जिसके लिए आज़ादी के दीवानों ने बड़ी कीमत अदा की. उन्होंने आज़ादी का सौदा अपनी जान से किया और सन १९५० में हमे ये विश्वास दिलाया की अब हम पूर्ण रूप से स्वतंत्र हो गए है. भारत एक लोकतान्त्रिक देश बन गया था और हम सब आजाद भारत के वासी.
मगर आज ६१ सालों के बाद क्या वाकई में हम ये कह सकते है की हम स्वतंत्र हैं? ये सच है की हमे अंग्रेजों की गुलामी से आज़ादी मिल गयी. मगर क्या आज भी हम और आप गुलामी की ज़िन्दगी नहीं जी रहे? हम उस भारत देश के वासी हैं जहाँ एजुकेशन लोन १२.५ प्रतिशत और कार लोन १० प्रतिशत ब्याज में मिलता है. यहाँ एक तरफ बस और ट्रेनों के दाम बढ़ रहे हैं तो दूसरी ओर हवाई यात्रा सस्ती होती जा रही है. सब्जियो के दाम आसमान छुते जा रहे हैं और नशीले पदार्थ आधे दामो में बिक रहे है. आम आदमी की ज़रूरत मंहगी और खास आदमी की हर ज़रूरतें सस्ती होती जा रही है. फिर भी हम आजाद भारत में रहते है. आखिर कहा हैं आज़ादी?
घर से निकलते वक़्त हमे ये पता नहीं होता की शाम को सही सलामत लौटेंगें भी या नहीं? हर भीड़-भाड़ वाली जगह में हमें ये डर लगा रहता है कि कहीं कोई धमाका ना हो हो जाये? कही हम किसी आतंकवादी संगठन का निशाना ना बन जाये? क्या इससे कहते हैं आज़ादी?
हमारे देश में हर किसी को स्वतंत्र रूप से बोलने का अधिकार है। मगर जब कोई नेता या अभिनेता किसी के खिलाफ कुछ बोल देता है तो बाद में उसे सार्वजनिक रूप से माफ़ी मांगने पर जोर दिया जाता है। तब कहाँ चला जाता है ये अधिकार? क्या इस स्वतंत्र देश में किसी को अपनी राय देने कि या बात रखने कि भी आज़ादी नहीं है? यूँ तो हमारी मात्र भाषा हिंदी है मगर महाराष्ट्र में हिंदी भाषियों को इसका प्रयोग करने से ही रोका जाता है. क्या इससे कहते हैं आज़ादी? फिर भी हम आजाद भारत में रहते है.
कई लोग सोचते है कि वो आजाद है. अगर हम अपने चारों ओर नज़र घुमा के देखेंगें तो पायेंगें कि कितने ऐसे लोग हैं जो नशे के बंधन से बंधें हैं तो कोई सत्ता के लालच में बंधा हैं.कुछ लोग कहते हैं कि वो अपने परिवार के लिए जीते हैं तो कुछ किसी कम्पनी या संस्था के लिए कार्य करने क बंधन से बंधें हैं. क्या हम सच में आजाद हैं?
पुराने रीति-रिवाजों के नाम पर आज भी ऊँची-नींची जातियां देखकर लोगों को समाज में रहने का दर्ज़ा दिया जाता है. फिर भी हम खुद को स्वतंत्र कहते हैं. दो अलग-अलग जाती के लोग एक नहीं हो सकते, प्यार करते हैं तो मार दिए जाते है. क्या हम इसी भारत देश में रहते है जहाँ भगवान राधा-कृष्ण ने प्यार के मायने समझाए थे? आज तो यहाँ किसी को प्यार करने कि भी आज़ादी नहीं है. आखिर कहाँ है आज़ादी? आज भी माता-पिता अपने बच्चों का भविष्य खुद चुनते हैं. क्लास में सबसे अच्छे नंबर लाने का दबाव डालते हैं. उन्हें क्या बनना है, कौन सी रह पकड़नी है, और तो और किससे शादी करनी है ये भी माता-पिता ही तय करते है. कुछ बच्चे तो इस दबाव में अपनी जान तक गँवा बैठते हैं. क्या ये बच्चे सच में आजाद हैं?
हमारे देश में औरतों और मर्दों को बराबरी का दर्ज़ा दिया जाता है. लेकिन कुछ समय पहले आई एक फिल्म में आपत्तिजनक द्रश्यों को लेकर फिल्म की अभिनेत्री को एक दल ने साड़ी तोहफे में दे डाली उसके खिलाफ नारे लगाये गए. वहीँ फिल्म के अभिनेता को किसी ने धोती या शर्ट नहीं भिजवाई. क्यों? जबकि सेंसर बोर्ड उस द्रश्य को पास कर चुका था. क्या आजाद भारत में आज भी नारी मर्दों की गुलामी में कैद है? कुछ स्त्रियों के पास तो ये चुनाव करने की भी आज़ादी नहीं होती कि वे अपना जीवन किस प्रकार जियें? पहले पिता फिर पति और उसके बाद बेटों के सहारे वो अपनी पूरी ज़िन्दगी बिता देतीं हैं. क्या वो खुद को स्वतंत्र कह सकती हैं?
मगर कुछ लोग तो ऐसे भी है जो पूर्ण रूप से स्वतंत्र हैं. मसलन ८० प्रतिशत गावों में डाक्टर्स को काम न करने कि आज़ादी है. आज ऐसा समय आ गया है जब हमे अपनी आज़ादी कि कीमत टैक्स के रूप में सरकार को चुकानी पड़ती है.एक भिखारी भी जब दुकान से साबुन खरीदता है तो टैक्स चुकता है. क्योकि आज आज़ादी मुफ्त में नहीं मिलती. ये भी बिकाऊ और मंहगी हो गयी है. तो वही सरकार से जूड़े लोगो को आज़ादी है कि वो जनता की कमाई से जगह-जगह खुद की प्रतिमाएं स्थापित करे. आतंकवादियों को ये आज़ादी है की वो जब और जहाँ चाहे बम गिराकर लोगो की जानें लेले. मीडिया आजाद है की वो किसी की भी निजी ज़न्दगी पर हमला कर दे. पुलिस के पास किसी को भी गुनेहगार साबित करने की आज़ादी है. तो वही गुनहगारों को बिना किसी डर के खुलेआम घुमने की आज़ादी है.
आज सबके लिए आज़ादी के अलग-अलग मायने है. फिर भी हम आजाद भारत में रहते हैं.हमारा देश तो ६१ साल पहले ही लोकतान्त्रिक देश बन गया था मगर यहाँ के वासी आज भी किसी न किसी के गुलाम ही हैं.
मगर आज ६१ सालों के बाद क्या वाकई में हम ये कह सकते है की हम स्वतंत्र हैं? ये सच है की हमे अंग्रेजों की गुलामी से आज़ादी मिल गयी. मगर क्या आज भी हम और आप गुलामी की ज़िन्दगी नहीं जी रहे? हम उस भारत देश के वासी हैं जहाँ एजुकेशन लोन १२.५ प्रतिशत और कार लोन १० प्रतिशत ब्याज में मिलता है. यहाँ एक तरफ बस और ट्रेनों के दाम बढ़ रहे हैं तो दूसरी ओर हवाई यात्रा सस्ती होती जा रही है. सब्जियो के दाम आसमान छुते जा रहे हैं और नशीले पदार्थ आधे दामो में बिक रहे है. आम आदमी की ज़रूरत मंहगी और खास आदमी की हर ज़रूरतें सस्ती होती जा रही है. फिर भी हम आजाद भारत में रहते है. आखिर कहा हैं आज़ादी?
घर से निकलते वक़्त हमे ये पता नहीं होता की शाम को सही सलामत लौटेंगें भी या नहीं? हर भीड़-भाड़ वाली जगह में हमें ये डर लगा रहता है कि कहीं कोई धमाका ना हो हो जाये? कही हम किसी आतंकवादी संगठन का निशाना ना बन जाये? क्या इससे कहते हैं आज़ादी?
हमारे देश में हर किसी को स्वतंत्र रूप से बोलने का अधिकार है। मगर जब कोई नेता या अभिनेता किसी के खिलाफ कुछ बोल देता है तो बाद में उसे सार्वजनिक रूप से माफ़ी मांगने पर जोर दिया जाता है। तब कहाँ चला जाता है ये अधिकार? क्या इस स्वतंत्र देश में किसी को अपनी राय देने कि या बात रखने कि भी आज़ादी नहीं है? यूँ तो हमारी मात्र भाषा हिंदी है मगर महाराष्ट्र में हिंदी भाषियों को इसका प्रयोग करने से ही रोका जाता है. क्या इससे कहते हैं आज़ादी? फिर भी हम आजाद भारत में रहते है.
कई लोग सोचते है कि वो आजाद है. अगर हम अपने चारों ओर नज़र घुमा के देखेंगें तो पायेंगें कि कितने ऐसे लोग हैं जो नशे के बंधन से बंधें हैं तो कोई सत्ता के लालच में बंधा हैं.कुछ लोग कहते हैं कि वो अपने परिवार के लिए जीते हैं तो कुछ किसी कम्पनी या संस्था के लिए कार्य करने क बंधन से बंधें हैं. क्या हम सच में आजाद हैं?
पुराने रीति-रिवाजों के नाम पर आज भी ऊँची-नींची जातियां देखकर लोगों को समाज में रहने का दर्ज़ा दिया जाता है. फिर भी हम खुद को स्वतंत्र कहते हैं. दो अलग-अलग जाती के लोग एक नहीं हो सकते, प्यार करते हैं तो मार दिए जाते है. क्या हम इसी भारत देश में रहते है जहाँ भगवान राधा-कृष्ण ने प्यार के मायने समझाए थे? आज तो यहाँ किसी को प्यार करने कि भी आज़ादी नहीं है. आखिर कहाँ है आज़ादी? आज भी माता-पिता अपने बच्चों का भविष्य खुद चुनते हैं. क्लास में सबसे अच्छे नंबर लाने का दबाव डालते हैं. उन्हें क्या बनना है, कौन सी रह पकड़नी है, और तो और किससे शादी करनी है ये भी माता-पिता ही तय करते है. कुछ बच्चे तो इस दबाव में अपनी जान तक गँवा बैठते हैं. क्या ये बच्चे सच में आजाद हैं?
हमारे देश में औरतों और मर्दों को बराबरी का दर्ज़ा दिया जाता है. लेकिन कुछ समय पहले आई एक फिल्म में आपत्तिजनक द्रश्यों को लेकर फिल्म की अभिनेत्री को एक दल ने साड़ी तोहफे में दे डाली उसके खिलाफ नारे लगाये गए. वहीँ फिल्म के अभिनेता को किसी ने धोती या शर्ट नहीं भिजवाई. क्यों? जबकि सेंसर बोर्ड उस द्रश्य को पास कर चुका था. क्या आजाद भारत में आज भी नारी मर्दों की गुलामी में कैद है? कुछ स्त्रियों के पास तो ये चुनाव करने की भी आज़ादी नहीं होती कि वे अपना जीवन किस प्रकार जियें? पहले पिता फिर पति और उसके बाद बेटों के सहारे वो अपनी पूरी ज़िन्दगी बिता देतीं हैं. क्या वो खुद को स्वतंत्र कह सकती हैं?
मगर कुछ लोग तो ऐसे भी है जो पूर्ण रूप से स्वतंत्र हैं. मसलन ८० प्रतिशत गावों में डाक्टर्स को काम न करने कि आज़ादी है. आज ऐसा समय आ गया है जब हमे अपनी आज़ादी कि कीमत टैक्स के रूप में सरकार को चुकानी पड़ती है.एक भिखारी भी जब दुकान से साबुन खरीदता है तो टैक्स चुकता है. क्योकि आज आज़ादी मुफ्त में नहीं मिलती. ये भी बिकाऊ और मंहगी हो गयी है. तो वही सरकार से जूड़े लोगो को आज़ादी है कि वो जनता की कमाई से जगह-जगह खुद की प्रतिमाएं स्थापित करे. आतंकवादियों को ये आज़ादी है की वो जब और जहाँ चाहे बम गिराकर लोगो की जानें लेले. मीडिया आजाद है की वो किसी की भी निजी ज़न्दगी पर हमला कर दे. पुलिस के पास किसी को भी गुनेहगार साबित करने की आज़ादी है. तो वही गुनहगारों को बिना किसी डर के खुलेआम घुमने की आज़ादी है.
आज सबके लिए आज़ादी के अलग-अलग मायने है. फिर भी हम आजाद भारत में रहते हैं.हमारा देश तो ६१ साल पहले ही लोकतान्त्रिक देश बन गया था मगर यहाँ के वासी आज भी किसी न किसी के गुलाम ही हैं.
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