मंगलवार, 3 जुलाई 2018

मेरे यादों का शहर...


मैं यादों के उस शहर से अभी- अभी होकर आई हूं 
ठहरी है जहां निगाहें मेरी 
उस समंदर से मिल कर आई हूं 
मैं यादों के उस शहर से अभी- अभी होकर आई हूं...
मिलती थी हर रोज़ खुशियां जहां 

हाथों में डाले हाथ हम गुज़रे थे जहां
उस रेत पर अपने निशान छोड़ कर आई हूं
मैं यादों के उस शहर से अभी- अभी होकर आई हूं...

तस्वीरों का जहां हिसाब नहीं हुआ
नज़ारों का जहां कभी अंत नहीं हुआ
उन वादियों से मिल कर आई हूं
मैं यादों के उस शहर से अभी- अभी होकर आई हूं...

शरारतों ने जहां कभी इजाज़त नहीं मांगी
मोहब्बत ने जहां कभी, वक़्त की मोहलत नहीं मांगी
उन गलियों से गुज़र कर आई हूं
मैं यादों के उस शहर से अभी- अभी होकर आई हूं...

बाहें खोल कर जहां इज़हारे इश्क़ किया
तेरे साथ जहां हर पल को जिया
मुस्कुराहटों से भरी उन शामों से मिल कर आई हूं
मैं यादों के उस शहर से अभी- अभी होकर आई हूं...

डूबता हैं जहां सूरज नशे में चूर होकर
चांद की रौशनी में खुद को खोकर
शाम की उस चौखट को छू कर आई हूं
मैं यादों के उस शहर से अभी- अभी होकर आई हूं...

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