चंचल मन अति रैंडम... यूँ ही कॉलेज का समय याद आ गया... उस समय मैं बड़ी पंगेबाज हुआ करती थी... गर्ल्स स्कूल में पढ़ने के बाद पहली बार कोएड कॉलेज में आना काफ़ी नया अनुभव था मेरे लिए... चूँकि कॉलेज घर के बगल में था, सो पापा ने साफ़ बोल दिया था... कभी कोई लड़का परेशान करे तो रो के घर मत आना... भले ही उससे भिड़ आना, ऐसा उन्होंने शायद इसलिए बोला जिससे मेरे अन्दर कोएड में पढ़ने को लेकर किसी तरह का डर ना रहे...
मेरे पंगों की शुरुआत तब हुई जब एडमिशन फॉर्म को लेकर एक प्रोफेसर लगातार हमे कॉलेज के चक्कर कटवा रहे थे... रोज़-रोज़ कल का बहाना बनाकर हमें वापस भेज देते... मुझे जाने क्या सूझी और उनको बोल दिया, आप एक तय तारीख़ क्यों नहीं बता देते हम सीधे तभी आ जायेगें, बस फिर क्या था... वो भड़क गए और बोल दिया तुम्हें तो अब किसी हाल में एडमिशन नहीं देगे... तभी उनके पास बैठे दूसरे प्रोफेसर ने मुझे पहचान लिया और उन्हें बताया अवधेश की बिटिया है... इतना सुनते ही भड़के हुए चेहरे पर मुस्कान आ गयी... और बोले अब समझ आया इतनी दबंग कैसे है, अब तो इसे एडमिशन देना ही पड़ेगा.... दरअसल पापा अपने ज़माने में कॉलेज के नेता हुआ करते थे... और सभी प्रोफेसर्स से उनकी दोस्ती रहा करती थी... और अब उन्हीं प्रोफेसर्स से पढ़ने की बारी मेरी थी...
खैर, इस पंगे से तो मैं ख़ुशी- ख़ुशी बाहर आ गयी... पर अभी तो ये सिलसिला शुरू भर हुआ था... मेरा एडमिशन भी आराम से हो गया... कॉलेज लाइफ शुरू हो चुकी थी, जिसके साथ ही कुछ लड़कों से दोस्ती भी जल्दी ही हो गयी...एक अच्छा-खासा ग्रुप बन गया था हमारा... क्लास में तो याद ही नहीं कितनी बार गए हो... कॉलेज के पार्किंग एरिया में सीढ़ियों पर ही हमने अड्डा बना रखा था... जहाँ रोज़ सिर्फ हंसी-मजाक और गप्पे लड़ाए जाते थे...
तभी इलेक्शन का समय आया... मेरा घर पास में होने के कारण लड़कों का एक झुंड मेरे दरवाज़े आ खड़ा हुआ... और हाथ जोड़कर वोट देने की अपील करने लगा... वो लड़के जो कॉलेज में घूर-घूर के देखा करते थे उनके लिए अचानक से ही मैं बहन बन गयी... हो भी क्यूँ न मामला वोट लेने का जो था... अपने दरवाज़े इनके सारे लड़कों को देखकर मुझे गुस्सा आ गया... और उन्हें अच्छी तरीके से हड़क दिया... साथ ही सख्त हिदायत दे दी की मेरे घर के आगे उनका एक भी पोस्टर नहीं दिखना चाहिए... मैंने बोल तो दिया पर उसका अंजाम नहीं सोचा था...
उसी शाम मेरे दोस्तों का फ़ोन आया कि तुमने क्या पंगा कर दिया है... कुछ दिन तक कॉलेज मत आना... दरअसल कॉलेज में मेरे नाम का फ़तवा जारी हो गया था... कि ये लड़की कॉलेज में नज़र भी आये तो बच के नहीं जानी चाहिए... तकरीबन इलेक्शन होने तक तो मैं घर पर ही रही... उसी बीच मेरी एक पढ़ाकू सहेली को कॉलेज में काम निकल आया और मुझे साथ लेकर वो कॉलेज आ गयी... ना जाने कैसे मेरे दोस्तों को ये खबर मिल गयी और कॉलेज आकर मुझे घर जाने को बोल दिया... क्यूंकि उन लड़कों को ये पता चल चुका था कि मैं कॉलेज में हूँ... जैसे तैसे मैं घर तो आ गयी पर कुछ दिन तक मेरा कॉलेज जाना बंद हो गया...
मेरे साथ की लड़कियों को अक्सर लगता था की मैं ये सब जान-बूझकर सबकी नज़रों में आने के लिए करती हूँ... पर ऐसा कुछ भी नहीं था... मैं पंगे नहीं लेती थी, पंगे खुद चल कर मेरे पास आ जाया करते थे... 5 साल में सिर्फ 1 साल के लिए कॉलेज गयी और इतने पंगे हो गए... ना जाने पूरे 5 साल जाती तो क्या होता...
बहुत अच्छा समय हुआ करता था वो... स्कूल और कॉलेज के दिन हर किसी के लिए ख़ास होते है... मेरे लिए भी है... आज वक़्त ने बहुत कुछ बदल दिया है... सब अपनी ज़िन्दगी में व्यस्त है...
लगता है टाइम मशीन के ज़रिये फिर उन्हीं दिनों में पहुँच जाये... फिर से टीन-एज हो जाये...
मेरे पंगों की शुरुआत तब हुई जब एडमिशन फॉर्म को लेकर एक प्रोफेसर लगातार हमे कॉलेज के चक्कर कटवा रहे थे... रोज़-रोज़ कल का बहाना बनाकर हमें वापस भेज देते... मुझे जाने क्या सूझी और उनको बोल दिया, आप एक तय तारीख़ क्यों नहीं बता देते हम सीधे तभी आ जायेगें, बस फिर क्या था... वो भड़क गए और बोल दिया तुम्हें तो अब किसी हाल में एडमिशन नहीं देगे... तभी उनके पास बैठे दूसरे प्रोफेसर ने मुझे पहचान लिया और उन्हें बताया अवधेश की बिटिया है... इतना सुनते ही भड़के हुए चेहरे पर मुस्कान आ गयी... और बोले अब समझ आया इतनी दबंग कैसे है, अब तो इसे एडमिशन देना ही पड़ेगा.... दरअसल पापा अपने ज़माने में कॉलेज के नेता हुआ करते थे... और सभी प्रोफेसर्स से उनकी दोस्ती रहा करती थी... और अब उन्हीं प्रोफेसर्स से पढ़ने की बारी मेरी थी...
खैर, इस पंगे से तो मैं ख़ुशी- ख़ुशी बाहर आ गयी... पर अभी तो ये सिलसिला शुरू भर हुआ था... मेरा एडमिशन भी आराम से हो गया... कॉलेज लाइफ शुरू हो चुकी थी, जिसके साथ ही कुछ लड़कों से दोस्ती भी जल्दी ही हो गयी...एक अच्छा-खासा ग्रुप बन गया था हमारा... क्लास में तो याद ही नहीं कितनी बार गए हो... कॉलेज के पार्किंग एरिया में सीढ़ियों पर ही हमने अड्डा बना रखा था... जहाँ रोज़ सिर्फ हंसी-मजाक और गप्पे लड़ाए जाते थे...
तभी इलेक्शन का समय आया... मेरा घर पास में होने के कारण लड़कों का एक झुंड मेरे दरवाज़े आ खड़ा हुआ... और हाथ जोड़कर वोट देने की अपील करने लगा... वो लड़के जो कॉलेज में घूर-घूर के देखा करते थे उनके लिए अचानक से ही मैं बहन बन गयी... हो भी क्यूँ न मामला वोट लेने का जो था... अपने दरवाज़े इनके सारे लड़कों को देखकर मुझे गुस्सा आ गया... और उन्हें अच्छी तरीके से हड़क दिया... साथ ही सख्त हिदायत दे दी की मेरे घर के आगे उनका एक भी पोस्टर नहीं दिखना चाहिए... मैंने बोल तो दिया पर उसका अंजाम नहीं सोचा था...
उसी शाम मेरे दोस्तों का फ़ोन आया कि तुमने क्या पंगा कर दिया है... कुछ दिन तक कॉलेज मत आना... दरअसल कॉलेज में मेरे नाम का फ़तवा जारी हो गया था... कि ये लड़की कॉलेज में नज़र भी आये तो बच के नहीं जानी चाहिए... तकरीबन इलेक्शन होने तक तो मैं घर पर ही रही... उसी बीच मेरी एक पढ़ाकू सहेली को कॉलेज में काम निकल आया और मुझे साथ लेकर वो कॉलेज आ गयी... ना जाने कैसे मेरे दोस्तों को ये खबर मिल गयी और कॉलेज आकर मुझे घर जाने को बोल दिया... क्यूंकि उन लड़कों को ये पता चल चुका था कि मैं कॉलेज में हूँ... जैसे तैसे मैं घर तो आ गयी पर कुछ दिन तक मेरा कॉलेज जाना बंद हो गया...
मेरे साथ की लड़कियों को अक्सर लगता था की मैं ये सब जान-बूझकर सबकी नज़रों में आने के लिए करती हूँ... पर ऐसा कुछ भी नहीं था... मैं पंगे नहीं लेती थी, पंगे खुद चल कर मेरे पास आ जाया करते थे... 5 साल में सिर्फ 1 साल के लिए कॉलेज गयी और इतने पंगे हो गए... ना जाने पूरे 5 साल जाती तो क्या होता...
बहुत अच्छा समय हुआ करता था वो... स्कूल और कॉलेज के दिन हर किसी के लिए ख़ास होते है... मेरे लिए भी है... आज वक़्त ने बहुत कुछ बदल दिया है... सब अपनी ज़िन्दगी में व्यस्त है...
लगता है टाइम मशीन के ज़रिये फिर उन्हीं दिनों में पहुँच जाये... फिर से टीन-एज हो जाये...