क्यों न थोड़े मतलबी हो जाये...
सुबह ऑफिस जाने की जल्दी, दिनभर काम की
भागा-दौड़ी... कुछ याद है, परिवार संग यूँ ही गप्पे लड़ाते हुए आखिरी बार
कब चाय का प्याला हाथ मे लिया था... कभी टीवी तो कभी स्मार्ट फोन की दुनिया
मे मस्त, कुछ याद है आखिरी बार कब खुली हवा मे किसी अपने के साथ चंद पल
गुजारे थे...सबको खुश करने के फेर मे चेहरे पर बनावटी मुस्कान लिए, कुछ याद
है आखिरी बार कब सच्ची मुस्कुराहट को जिया था...
कुछ याद है आखिरी बार कब जिये थे, वो सुकून भरे पल... आखिरी बार कब हुए थे थोड़ा मतलबी...