कहते हैं अगर आपका प्यार आपसे दूर जाना चाहे तो उसे जाने दो, अगर वो वापस आता है तो आपका है और अगर नहीं आता तो वो आपका कभी था ही नहीं। मैंने भी अपने प्यार को उस समय आज़ाद कर दिया जब उसने मुझसे दूर जाने की बात कही। मगर मैं उसके वापस आने की दुआ नहीं करता क्योंकि सभी को अपनी ज़िन्दगी के फैसले लेने का पूरा हक़ है। मेरा नाम सौरभ है और मैं भोपाल का रहने वाला हूं। ये कहानी मेरे पहले प्यार की है। वो प्यार जो कभी मेरा था ही नहीं। मुझसे दूर जाना उसका फैसला था। मगर उसके फैसले की इज्जत करना मेरा फैसला था।
हमारी मुलाकात 9 साल पहले एक स्कूल में हुई थी। एमबीए के एंट्रेंस टेस्ट के लिए हम दोनों का सेंटर एक ही स्कूल में पड़ा था और इत्तेफ़ाक़ से हमारी सीट्स भी अगल- बगल ही थी। उस दिन रीजनिंग टेस्ट में मैंने उसकी काफी मदद की और यहीं से हुई हमारी दोस्ती की शुरुआत। वो रीजनिंग में कमज़ोर थी इसलिए उसने मुझसे रीजनिंग पढ़ाने की रिक्वेस्ट की, जिसे मैंने मान लिया। अगले दिन से मैंने उसे रीजनिंग में हेल्प करना शुरू कर दिया और उसकी सभी ट्रिक्स उसे सिखाने लगा।
कुछ महीनों बाद हम दोनों ने पुणे के एमबीए कॉलेज का एंट्रेंस टेस्ट दिया और उसमें पास हो गए। ये पहला मौका था जब हम दोनों घर वालों से दूर एक ही शहर में और एक ही कॉलेज में पढ़ रहे थे। उसका हर छोटी- छोटी बात पर मुझपर डिपेंड होना मुझे अच्छा लगने लगा। गर्ल्स हॉस्टल में छुप- छुप कर उससे मिलने जाना, बाकी लड़कों की नजर से उसको बचा कर रखना और उसकी हर ख्वाहिश पूरा करना मुझे बहुत लगता। हां, उसे गुस्सा थोड़ा जल्दी आ जाता था मगर उसके मासूम चेहरे के आगे उसका गुस्सा भी मुझे प्यारा लगता और कई बार अपनी गलती न होने पर भी मैं उससे माफ़ी मांग लेता।
धीरे- धीरे हमें एहसास होने लगा कि हम एक दूसरे से प्यार करने लगे हैं। कॉलेज के वो दो साल हमारे प्यार में कब गुजर गए, पता ही नहीं चला। हम दोनों को नौकरी मिलते ही मैंने अपने घर में उसके बारे में सबको बता दिया। मुझे लगा मेरे घर वाले नाराज़ होंगे मगर उम्मीद से उलट जाकर मेरे घर वालों ने हमारे प्यार के लिए हामी भर दी। मगर शादी करने से पहले हमें अपने- अपने करियर में फोकस करने की हिदायत भी दे दी। करियर बनाने की भागदौड़ में कब कई साल निकल गए पता ही नहीं चला। हमारा रिश्ता अब लॉन्ग डिस्टेंस रिलेशनशिप का बन चुका था क्योंकि मैं जॉब के लिए दिल्ली आ गया और वो पुणे में ही जॉब करने लगी।
हमारे शहर की दूरी धीरे- धीरे हमारे रिश्ते की भी दूरी बनने लगी। हम कभी रोज़ मिला करते थे मगर अब साल में सिर्फ दो- तीन बार ही मिलना हो पाता। फ़ोन पर भी अब काम ही हमारी बातें हो पाती और जब होती तो वो किसी न किसी लड़ाई पर जाकर ही ख़त्म होतीं। हम दोनों हमारे रिश्ते के बीच आई इस दूरी को महसूस कर पा रहे थे मगर इस बात को स्वीकारना हम दोनों के लिए आसान नहीं था क्योंकि हम अपने रिश्ते को कई साल दे चुके थे।
मुझे आज भी याद है वो दिन जब हम अपने प्यार की 9 वीं एनिवर्सरी मनाने के लिए मिले थे। मैं अक्सर उससे मिलने पुणे जाता, ऐसा पहली बार था जब वो मुझसे मिलने दिल्ली आई थी। मैं उससे मिलने की बात पर बहुत खुश था। मगर मुझे क्या पता था ये हमारी आखिरी मुलाक़ात होगी। दरअसल हमारे घर वाले अब शादी करने के लिए बोलने लगे थे। मगर न तो वो पुणे छोड़ने के लिए राज़ी थी और न मैं दिल्ली। मगर इस मुलाक़ात में मुझे उम्मीद थी कि हमारी प्रॉब्लम का कोई न कोई सॉल्यूशन ज़रूर निकलेगा। रेस्टोरेंट पहुंचते ही जैसे एक नई लड़की से मुलाक़ात हुई। ये वो अनन्या नहीं थी जिसे मैं बरसों से जानता था, प्यार करता था। मुझसे इतने समय बाद मिलने पर भी वो ज्यादा खुश नजर नहीं आ रही थी।
मैं उससे बहुत सारी बातें करना चाहता था। मगर उससे पहले उसने अपने मन की बात मेरे सामने रख दी। उसने कहा कि उसके घरवाले अब उसपर शादी का दबाव बना रहे हैं मगर तुम्हारी सैलरी उन्हें ज़िम्मेदारी उठाने के हिसाब से कम लगती है। इसलिए वो मुझे तुमसे शादी करने से रोक रहे हैं। मैंने तुरंत उससे पूछा कि मुझे किसी और की परवाह नहीं हैं, सिर्फ इतना बता दो कि इस बारे में तुम क्या सोचती हो। उसने कहा, "मुझे लगता है मेरे घरवाले सही कह रहे हैं, तुम्हारी सैलेरी वाकई बहुत कम है।" उसके जवाब ने मुझे अंदर तक तोड़ कर रख दिया। ऐसा पहली बार था जब मेरा उसे रोकने या मनाने का मन नहीं हुआ। वो मेरी आंखों के सामने मुझसे दूर जा रही थी मगर मैंने उसे नहीं रोका, उसे जाने दिया अपनी ज़िन्दगी से दूर... बहुत दूर।
उस मुलाक़ात को साल भर बीत चुका है, और उसकी शादी अभी तक कहीं नहीं हुई है। मगर आज भी जब आंखें बंद करके उसके बारे में सोचता हूं तो सिर्फ यही दुआ करता हूं कि वो जहां भी रहे खुश रहे।
प्यार को परिभाषित करती सुन्दर लेखनी।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया पुरुषोत्तम जी...
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