सोचती हूं जब अपनी ही जिंदगी को शब्दों में उतारने की बारी आती है तो कितनी हिम्मत की जरूरत पड़ती है। कितना कुछ बीता हुआ आंखों के सामने आ जाता है। वो अल्हडपन, वो बेफिक्री, वो दिल में कुछ बनने का जूनून...ऐसी ही तो थी मैं 11 साल पहले तक। आज ऐसा लगता है जैसे इतने सालों का सफर एक लम्हे में सिमट आया है। पहले प्यार को मैंने सिर्फ दूसरों की जुबानी सुना ही था, कभी खुद महसूस नहीं किया था। यही सोचती थी कि पहले कुछ बन जाऊं, अपने पैरों पर खड़ी हो जाऊं उसके बाद प्यार के बारे में सोचूंगी। मम्मी- पापा ने हमेशा जरूरतें पूरी कीं लेकिन शौक खुद की कमाई से ही पूरे किये। मेरा नाम प्रिया है और मैं आपको बताने जा रही हूं अपने पहले प्यार की कहानी...
मैं एक प्रतिष्ठित संस्थान में नौकरी कर रही थी, जब अमर मेरी जिंदगी में आया। वो मेरा ऑफिस कुलीग था। अपने डिपार्टमेंट में 5 लड़कों के बीच एक अकेली लड़की थी मैं, इसलिए सभी बहुत केयर करते थे मेरी। मगर उनकी केयर को कभी मैंने अपने काम के बीच नहीं आने दिया और हमेशा अपना बेस्ट देने की कोशिश की। मेरा और अमर का अक्सर फील्ड वर्क के लिए साथ बाहर जाना होता। धीरे- धीरे काम के बीच हम दोनों में कब प्यार हो गया, पता ही नहीं चला। उसका मेरी केयर करना, मुझपर हक जताना...ये मुझे बहुत अच्छा लगता।
वो मुझे कभी ऑफिस में किसी और लड़के से बात नहीं करने देता, ये कहकर कि उसकी नीयत ठीक नहीं है...यहां तक कि मेरे बेस्ट फ्रेंड से भी मेरा बात करना उसे पसंद नहीं था। मैं भी उसकी बातों में आकर ये सोचती कि ये उसका मेरे लिए प्यार और कन्सर्न है। धीरे- धीरे उसने मुझे बदलना शुरू कर दिया जिसकी शुरुआत हुई मेरे कपड़ों से। वो हमेशा मुझे ऑफिस सूट पहनकर आने को कहता, अगर जीन्स- टॉप पहना है तो साथ में स्टोल जरूरी है, कट स्लीव्स और कैप्री नहीं पहनने हैं, स्किन टाइट टॉप तो बिलकुल नहीं। मेरे लिए ये सब करना बहुत मुश्किल था। मैं एक ओपन माइंडेड फैमिली से थी और अमर एक कन्जर्वेटिव फैमिली से, पर फिर भी मुझे ना जाने क्या हो गया था। विरोध करने के बजाए उस प्यार में मुझे सब सही लगने लगा था। मैं ऐसी बिल्कुल नहीं थी।
कुछ दिनों के बाद उसका ट्रांसफर बनारस हो गया। वहां जाते ही पता नहीं उसे क्या हुआ, उसने मुझसे बात करना कम कर दिया। मैं बेचैन होने लगी थी, हर पल यही सोचती कि वो मुझसे बात क्यों नहीं कर रहा है। किस्मत से एक महीने बाद मेरा ट्रांसफर भी उसी शहर में हो गया। जब मैं वहां पहुंची तो मेरा सामना एक अलग ही अमर से हुआ। उसने मुझसे साफ- साफ कह दिया कि यहां मुझसे बात मत करना क्योंकि सबको लगता है कि मैंने तुम्हारा ट्रांसफर अपने पास करवाया है। उस अनजान शहर में अमर भी मेरे साथ अनजानों जैसा व्यवहार करता। उसके इस व्यवहार ने मुझे तोड़ना शुरू कर दिया।
वो दिन मुझे आज भी याद है जब एक बार ऑफिस में काम करते समय काफी देर हो गई थी। मेरे एक कुलीग ने मुझे आधे रास्ते तक छोड़ देने की रिक्वेस्ट की, जिसे मैंने मान लिया। हम बाइक से जा रहे थे तो रास्ते में हमारा एक्सीडेंट हो गया। मुझे हाथ में फ्रैक्चर हुआ और मेरे कुलीग को भी कुछ चोटें आ गईं। अगले दिन जब अमर को इस बात का पता चला तो मेरा हाल पूछने के बजाए, उसने मुझसे सिर्फ एक सवाल किया, "तुम जब गिरी तो तुम्हें उठाने के लिए उसने तुम्हें छुआ भी होगा"।
अमर के इस सवाल से मैं हैरान रह गई और इस बात ने अन्दर तक तोड़ कर रख दिया। मैंने सोचा कि जिस लड़के के लिए मैंने खुद को ऊपर से नीचे तक बदल डाला, आज वो मुझसे ऐसा सवाल कर रहा है। मैंने भी उसे 'हां' में जवाब दे दिया जिसके बाद उसने मुझसे यह रिश्ता खत्म करने के लिए बोल दिया। मैंने भी सोच लिया था कि अब जिंदगी में कभी उसकी तरफ मुड़ कर नहीं देखूंगी। लगभग 2 साल तक मैं डिप्रेशन में रही, जिसके बारे में मैंने अपने घर में किसी को पता भी नहीं लगने दिया। प्यार के नाम से भी नफरत करने लगी थी मैं। वो मेरा पहला प्यार था, जिसने इतनी बेदर्दी से मेरे प्यार को ठुकरा दिया, जैसे वो मुझसे दूर जाने का कोई बहाना ढूंढ़ रहा हो।
इस बीच मेरे दोस्तों ने मुझे उसकी यादों से बाहर लाने में बहुत मदद की और मैं अपनी नौकरी में बिजी हो गई। मगर मेरे कानों में अब भी अमर के वो आखिरी शब्द हमेशा गूंजते रहते। 3 साल बाद मेरे लिए शादी का एक रिश्ता आया। लड़का दिल्ली में अपनी फैमिली के साथ रहता था। उनका नाम अभिषेक था। एक साल के कोर्टशिप पीरियड के बाद मेरी शादी अभिषेक से हो गई। अपने पिछले रिश्ते की कडुवाहट में अक्सर मैं यही सोचती कि इस बार कुछ हुआ तो मैं अपने पति के खिलाफ भी खड़ी हो जाऊंगी लेकिन खुद को नहीं बदलूंगी।
मगर इस बार मुझे ऐसा कुछ करने की जरूरत नहीं पड़ी। अभिषेक बहुत ही सुलझे हुए, स्वीट से इंसान हैं। वो मुझे कभी किसी बात के लिए नहीं टोकते। न लड़कों से बात करने पर, न अपनी पसंद के कपड़े पहनने पर और न दोस्तों के साथ बाहर घूमने जाने पर। वो हमेशा मुझसे कहते हैं कि मुझे तुम पर पूरा विश्वास है, तुम कभी कुछ गलत नहीं करोगी और मैं तुम्हारी जिंदगी में दखल देने वाला कौन होता हूं। तुम्हें शादी करके लाया हूं, खरीद कर नहीं जो तुम पर हुकुम चलाऊं। अभिषेक के प्यार और विश्वास ने मेरे मन की कडुवाहट को प्यार में बदल दिया। वो अक्सर मेरे साथ घर के काम, खाना बनवाने में मेरी मदद और जरूरत पड़ने पर मुझे एक बच्चे की तरह पैम्पर भी करते हैं।
अभिषेक के साथ से मैंने जाना कि अमर से मेरा कभी प्यार का रिश्ता था ही नहीं। मैंने अमर से सिर्फ प्यार किया था लेकिन प्यार को निभाना मुझे अभिषेक ने सिखाया। उनके साथ मैं बहुत आजाद महसूस करती हूं। आज हमारी शादी को 2 साल से ज्यादा का समय हो गया है और अभी भी हम दोनों पति- पत्नी कम और लिव- इन- पार्टनर्स की तरह ज्यादा रहते हैं। सही मायने में मेरा पहला प्यार अभिषेक ही हैं। जिन्होंने मुझे कभी बदलने की कोशिश नहीं की बल्कि मेरी हर अच्छी- बुरी आदत के साथ पूरे दिल से मुझे अपनाया। यही तो प्यार होता है न... जहां कोई शर्त और कोई मजबूरी नहीं होती, सिर्फ प्यार होता है।
कहानी कैसी लगी... बताइएगा ज़रूर...
शर्तों पर प्यार? असंभव।
जवाब देंहटाएंसुन्दर लेखन।
पढ़ने के लिए आभार।
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