खुद से रूठी रहती हूं मैं
न जाने किस बात पे
आजकल वश नहीं चलता मेरा
मेरे ही जज़्बातों पे
अजीब सी चुभन लिए घूमती हूं
जो लगती है सीधा दिल पे
आजकल खुद पर नाराज़ रहती हूं
न जाने किस बात पे...
बातें एक नहीं हज़ारों चलती हैं
मेरे दिल और दिमाग में
न जाने क्या सोचने लगती हूं
आजकल हर बात पे
खुश दिखना मजबूरी है मेरी
क्योंकि खुशी है उसकी दांव पे
खुद से ही लड़ती रहती हूं मैं
न जाने किस बात पे...
न जाने किस बात पे...
खुद से बेवजह रूठना....सुन्दर लेखन ।बहुत-बहुत शुभकामनाएं ।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया...
जवाब देंहटाएं