दिवाली, खुशियों का, उजालों का, माँ लक्ष्मी के आगमन का, झिलमिलाता त्यौहार है दिवाली।
लेकिन इस बार दिवाली पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश का ग्रहण लग गया है. घर के बच्चे मायूस हैं. जहाँ एक ओर भारत भर में बच्चे पटाखे फोड़ रहे होंगे वहीं दिल्ली एनसीआर के बच्चे पूजा करके चुप-चाप दूसरे बच्चो को टीवी पर पटाखे जलाते देखेंगे। और बड़ी मासूमियत से अपने माता-पिता से पूछेंगे की हम पटाखे क्यों नहीं जला सकते ? अब माता- पिता उन्हें समझाए भी तो क्या...
सच है कि पटाखों से प्रदूषण फैलता है... लेकिन क्या ये पूरा सच है ? क्या दिल्ली एनसीआर में सिर्फ पटाखों की वजह से प्रदूषण फैलता है ? क्या गाड़ियों से निकलने वाला धुआं दिल्ली की आबो-हवा में हर रोज़ ज़हर नहीं घोलता ? क्या पास के शहरों के खेतों में लगी आग, दिल्ली में लोगों की साँसे नहीं रोकती ? मगर साल में सिर्फ एक बार आने वाला त्यौहार दिल्ली में प्रदूषण फैला देता है. छोटे-छोटे बच्चों की खुशियां जो एक फूलझड़ी देख कर बढ़ जाती है, वो दिल्ली में ज्यादा प्रदूषण फैलाती हैं. या फिर वो छोटे व्यापारी जो साल भर दिवाली का इंतज़ार करते हैं कि उनकी कुछ कमाई हो जाये और वो भी अपने घर में खुशियां बाँट सकें, वो ज्यादा प्रदूषण फैलाते हैं. क्या केवल दिल्ली शहर इतना नाज़ुक है की पटाखों के धुएं को न झेल पाए और बाकी शहर इतने शक्तिशाली कि उन्हें पटाखों के धुएं से कोई फर्क ही नहीं पड़ता ?
बचपन में जब घर के बड़े सीको, फूलझड़ी, अनार, चकरघिन्नी जैसे पटाखे लेकर आते थे, तो हमारा मन मचल उठता था। हम शाम के इंतज़ार में बेचैन रहते, कि कब पूजा होगी और कब हमें पटाखे जलाने को मिलेगें। मगर इस दिवाली हम अपने घर के बच्चों के मायूस चेहरों को देखेंगे और पूजा के बाद मिल कर कोसेंगे सुप्रीम कोर्ट के फैसले को.
जब हम बड़े ही इस फैसले को नहीं समझ पा रहे तो आखिर बच्चों को समझाएं भी तो क्या ?????
लेकिन इस बार दिवाली पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश का ग्रहण लग गया है. घर के बच्चे मायूस हैं. जहाँ एक ओर भारत भर में बच्चे पटाखे फोड़ रहे होंगे वहीं दिल्ली एनसीआर के बच्चे पूजा करके चुप-चाप दूसरे बच्चो को टीवी पर पटाखे जलाते देखेंगे। और बड़ी मासूमियत से अपने माता-पिता से पूछेंगे की हम पटाखे क्यों नहीं जला सकते ? अब माता- पिता उन्हें समझाए भी तो क्या...
सच है कि पटाखों से प्रदूषण फैलता है... लेकिन क्या ये पूरा सच है ? क्या दिल्ली एनसीआर में सिर्फ पटाखों की वजह से प्रदूषण फैलता है ? क्या गाड़ियों से निकलने वाला धुआं दिल्ली की आबो-हवा में हर रोज़ ज़हर नहीं घोलता ? क्या पास के शहरों के खेतों में लगी आग, दिल्ली में लोगों की साँसे नहीं रोकती ? मगर साल में सिर्फ एक बार आने वाला त्यौहार दिल्ली में प्रदूषण फैला देता है. छोटे-छोटे बच्चों की खुशियां जो एक फूलझड़ी देख कर बढ़ जाती है, वो दिल्ली में ज्यादा प्रदूषण फैलाती हैं. या फिर वो छोटे व्यापारी जो साल भर दिवाली का इंतज़ार करते हैं कि उनकी कुछ कमाई हो जाये और वो भी अपने घर में खुशियां बाँट सकें, वो ज्यादा प्रदूषण फैलाते हैं. क्या केवल दिल्ली शहर इतना नाज़ुक है की पटाखों के धुएं को न झेल पाए और बाकी शहर इतने शक्तिशाली कि उन्हें पटाखों के धुएं से कोई फर्क ही नहीं पड़ता ?
बचपन में जब घर के बड़े सीको, फूलझड़ी, अनार, चकरघिन्नी जैसे पटाखे लेकर आते थे, तो हमारा मन मचल उठता था। हम शाम के इंतज़ार में बेचैन रहते, कि कब पूजा होगी और कब हमें पटाखे जलाने को मिलेगें। मगर इस दिवाली हम अपने घर के बच्चों के मायूस चेहरों को देखेंगे और पूजा के बाद मिल कर कोसेंगे सुप्रीम कोर्ट के फैसले को.
जब हम बड़े ही इस फैसले को नहीं समझ पा रहे तो आखिर बच्चों को समझाएं भी तो क्या ?????
It is unfortunate
जवाब देंहटाएंRight
हटाएंSo true, saare pollution ka responsible sirf patakhe hi to hai....
जवाब देंहटाएंLekin kya sirf patakhe hi hain...
हटाएंBilkul sahi kaha.
जवाब देंहटाएंबच्चे तो बच्चे हैं ना.
Ryt
हटाएं