तेरे प्यार में हम अपना शहर छोड़ आए
बचपन से भरा वो आँगन छोड़ आए
होती थी सुबह जहाँ आंखें मलते-मलते
माँ के आँचल में नख़रे करते-करते
ममता से भरा वो आँचल छोड़ आए
तेरे प्यार में अपना शहर छोड़ आए
जहाँ हर गली से थी पहचान मेरी
गाड़ी की रफ़्तार से होती थी बातें मेरी
कुछ दूर पर था सहेलियों का ठिकाना
हर मौके पर हो जाता था मिलना-मिलाना
सहेलियों की वो खट्टी-मीठी बातें छोड़ आए
तेरे प्यार में हम अपना शहर छोड़ आए
जहाँ होती थी शाम कभी गंगा किनारे
डूबते सूरज को निहारते थे घंटों किनारे
मिलते थे जहाँ गोलगप्पे मटर वाले
परिवार संग लगते थे चाट के चटखारे
हम गोलगप्पे की वो मटर छोड़ आये
तेरे प्यार में हम अपना शहर छोड़ आए
Waoooooooo बहुत खूब लिखा आप को ही नही बल्कि हर किसी को याद आ गयी होगी अपने वो बीते पल ।
जवाब देंहटाएंThank you so much Ravi
हटाएंउम्दा। शानदार।
जवाब देंहटाएंbahut bahut dhanyawad Sir
हटाएंAmazing to read it real from real one
जवाब देंहटाएंkoshish karte hai humesha real likhne ki...jisse log jud sake...
हटाएंSuperb....your writing makes me nostalgic
जवाब देंहटाएंThnx a lot di... Appreciation means a lot...
हटाएंVery true dear nice lines... really missing those days....
हटाएंSach me... hum kanpur se bahar aa gaye lekin kanpur ko mere andar se bahar nahi nikala ja sakta...
हटाएंGood
जवाब देंहटाएंThnx
हटाएंWah....wah...wah..
जवाब देंहटाएंThank you...Thank You...
हटाएंBahut ache..
जवाब देंहटाएंThank you so much...
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