रविवार, 6 अक्टूबर 2013

यादों की किताब से बचपन की शैतानियों तक




अदभुत है ये बचपन
खुशियों से भरा, हर बात से अनजान
हर कैद से आज़ाद है ये बचपन.....

खुद में पूरी दुनिया समेटे
हर मुस्कान पे जीने के वादे लिए,
हँसता खिलखिलाता अठखेलियाँ करता
माँ के आँचल में छिप जाता है ये बचपन....

कभी सावन की बारिश में,
पेड़ की डालियों पर पड़े झूलों के साथ
ऊँची पींगे भरता है ये बचपन....

कभी बारिश की बूंदों में
दूर निकल जाने की आस में,
कागज़ की नाव बनाता है ये बचपन......

रेनी डे पर स्कूल का गोला
कैंटीन का वो ठंडा कोला
किताबों से जी चुराता
क्लास बंक करके कहीं छिप जाता
दोस्तों के साथ घंटों बैठकर गप्पे मारता है ये बचपन....

दादी नानी की कहानियों में
कभी परियों के देस में
तो कभी तारों की छावं में बिछ जाता है ये बचपन.....

कभी रूठता, कभी मनाता
लड़-झगड़ कर, दुश्मन को भी प्यार करता
हर खता को माफ़ कर देता है ये बचपन....

झूठ की परछाइयों से दूर भागता
सच को गले लगाता
भोलेपन की मिसाल है ये बचपन....

मिट्टी के खिलौने बनाता
पोषम पा भई पोषम करता
खुद से ही छुपन-छुपाई खेलता है ये बचपन....

न भूल पाने वाली यादों के साथ
कभी न लौट आने का वादे करके
रूठ के चला गया वो बचपन.....

यादों की किताब बनकर
ज़िन्दगी के सफ़र में कहीं पीछे छूट चुका
सचमुच बहुत अदभुत था वो बचपन.....





17 टिप्‍पणियां:

  1. This post has been selected for the Spicy Saturday Picks this week. Thank You for an amazing post! Cheers! Keep Blogging :)

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  2. nice poem....... मुझे तो जगजीत सिहं की वह कागज़ की कश्ती और बारिश का पानी वाली बात याद आ गई। निरंतर लिखते रहने के लिए शुभकामनाएं।

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  3. आपका बहुत बहुत धन्यवाद डॉ. प्रवीण ji...बचपन की यादें होती ही इतनी ख़ास है...मेरे ख्याल से हर किसी को अपना बचपन सबसे ज्यादा प्रिय होता है...

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