शनिवार, 23 सितंबर 2017

थिरकते ख़्वाब


ख़्वाबों की एक दुनिया है
इस दुनिया में कई ख़्वाब हैं
करते हैं हमसे बातें 
ये अरमानों की वो किताब हैं,
ख़्वाबों को कोई तस्वीरों मैं कैसे क़ैद करे 
ये तो उड़ते हैं मन के आँगन में 
लब्ज़ बना कर ख्वाबों को कोई कैसे बयां करे,
हर ख़्वाब की ऊंची है बोली
चुकानी पड़ती है जिनकी कीमत ऊंची,
अजब हैं कायदे दुनिया के 
कोशिश करते हैं यहां सब 
ख़्वाबों को मिट्टी में मिलाने 
फ़िर भी चलते रहते हैं हम
ख़ुद के कदम दुनिया से मिलाने,
जो ख़्वाब देखते हैं बंद आंखों से
उन्हें याद रखने की कोशिश करते नहीं 
पर जो ख़्वाब देखते हैं खुली आंखों से
उन्हें खुद से जुदा होने देते नहीं,
मुठ्ठी में बंद ख़्वाबों को कर दिया है आज़ाद
फर्क नहीं पड़ता हमें अब दिन हो या रात 
हमें तो बस पूरे करने हैं अपने "थिरकते ख़्वाब"

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