शुक्रवार, 22 सितंबर 2017

ज़िन्दगी




ज़िन्दगी के सफ़र पर, नई राहों से मुलाकात हुई
रुख़ जो किया उनकी तरफ़ पहचान उनसे बनती गई 
एक सिलसिला सा बनता गया यादों का 
हर याद मुझमें अपने निशान छोड़ती गई

"ज़िन्दगी", कुछ भी लिखने के लिए यह हमेशा ही मेरी फेवरेट रही है. क्यूंकि इसमें कई रंग समाये हैं. इस एक शब्द में कई अक्षर उभर कर सामने आते हैं. इसमें कभी उतार-चढ़ाव हैं तो कभी ठहराव है. कुछ मीठी यादें हैं तो कुछ कभी न भूलने वाले पल हैं. कुछ गलतियां हैं तो कुछ सबक सीखा देने वाले लम्हें भी हैं. कभी ख़ुशी तो कभी ग़म है. कभी घना अँधेरा है तो कभी उजली रौशनी है. इसमें अनमोल रिश्ते हैं तो दगा देने वाले लोग भी हैं. यह ठोकर देती है तो दुलार कर उठती भी है. 
इसकी सबसे ख़ास बात यह होती है कि यह कभी भी एक सामान नहीं होती। सबकी अलग-अलग होती है लेकिन किसी को भी अपनी नहीं बल्कि दूसरों की अच्छी लगती है. "ज़िन्दगी" होती ही कुछ ऐसी है.  

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