इस कहानी पर लिखते लिखते
मैं कई बार रुकी....हर बार सोचा की किसी समाज या समुदाय पर एकदम से लिख देना सही
नहीं है...कई लोगों की भावनाओं को ठेस पहुँच सकती है...लेकिन क्या इस बारे मैं सोच
कर मैं उस लड़की को दरकिनार कर दूं जो ना चाहते हुए भी सीधे तौर पर इस समस्या से
जुड़ी हुई है...
दोस्ती मैं मैंने कभी
जात-पात...पुर्लिंग-स्त्रीलिंग को आड़े नहीं आने दिया... यही वजह है की कायस्थ के
साथ-साथ पंडित, ठाकुर, जैन, सिन्धी, मराठी, गुजराती से लेकर मुस्लिम भी मेरे अच्छे
दोस्त है...हर किसी से बहुत कुछ सीखने को मिलता है...उनकी संस्कृति, सभ्यता
रहन-सहन सब कुछ... पर इसके साथ ही इनसे जुड़े कुछ ऐसी बातें भी सामने आते है जो एक
हद के बाद समझ के परे होने लगती है...हो सकता है ये हर घर की या हर लड़की की कहानी
न हो...या हो भी सकती है पर ये कितनी और कहाँ तक जायज़ है?????
शहर के एक संपन्न परिवार से
ताल्लुख रखने वाली...अंग्रेजी माध्यम से पढ़ी...ख़ुद कार ड्राइव करने वाली...बड़े से
घर में रहते हुए महंगे से महंगे कपड़े और सामान इस्तेमाल करने वाली मेरी दोस्त के
पास देखा जाये तो वो सब कुछ है जो एक अमीर घर की लड़की के पास होना चाहिए...दूर से
देखने पर यही लगेगा कि उसे किसी बात की कमी नहीं...लेकिन उसे करीब से जानने के बाद,
न जाने क्यों मैं खुद को उससे ज्यादा खुशनसीब मानने लगी... वह अपने परिवार में
किसी से खुल कर मन की बात नहीं कर सकती.... क्यूंकि दायरे में रहने की सलाह मिल
जाती है... स्नातक करते ही उसके ऊपर शादी का दबाव बनाया जाने लगा... जैसे तैसे घर
में लड़-झगड़ कर फैशन डिजाइनिंग का कोर्स करने के बाद भी वो नौकरी कर खुद की पहचान
नहीं बना सकती... क्यूंकि जिस समाज में वो रहती है वहां लड़कियों का नौकरी करना
सीधे पिता को नीचा दिखाने के बराबर है...यानि पिता के कमाने में ही कहीं चूक रही
होगी, तभी लड़की को बाहर निकल कर नौकरी करने की ज़रुरत आन पड़ी...और तो और उसकी शादी में
भी सिर्फ इसी वजह से अड़चने आयेगी...किस तरह का समाज है ये जो एक लड़की को
आत्मनिर्भर नहीं होने देना चाहता...????
उसके परिवार में लड़कों से
दोस्ती करना तो दूर, बात करना भी मना है... उसे एक फ़िल्म देखने के लिए भी घर में
झगड़ा करना पड़ता है...क्यूंकि परिवार को डर है, उनकी बेटी के बगल वाली सीट में कोई
लड़का ना बैठा हो... कहीं किसी ने देख लिया तो शादी कैसे होगी.... प्यार करना तो
जैसे उसके घर में क़त्ल करने के बराबर है... समाज में खबर फ़ैल गई, तो कौन शादी
करेगा... फैशन डिजाइनिंग का कोर्स भी इसलिए करने दिया कि शादी के बायो-डेटा में एक
डिग्री ही नज़र आ जाएगी... प्यार से बोल कर, ज़िद करके, बग़ावत करके, हर तरीके से घर
वालों को समझा कर देख लिया...पर परिणाम वहीँ का वहीँ...हर बात उसकी शादी से शुरू
होकर शादी पर ख़तम हो जाती है... और उसे इस बात के लिए डराया जाता है की समाज वाले
क्या कहेंगे.....वो जैसे सोने के महल में कैद एक चिड़िया बन कर रह गयी है...जिसके
माता पिता इस पिंजरे से निकाल कर शादी करके दूसरे पिंजरे में डालने की तैयारी कर
रहे...
मैंने यहाँ उसके समाज का
जिक्र नहीं किया... क्यूंकि समाज में हर किसी की कहानी एक नहीं होती... साथ ही इस
बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि हर जात या धर्म में समाज के ऐसे ठेकेदार तो
मिल ही जायेंगे... कई परिवार भी ऐसे मिल जायेंगे... इसलिए सीधे तौर पर एक समाज,
जात या धर्म पर ऊँगली उठा देना जायज़ नहीं है...
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