शनिवार, 26 सितंबर 2020

ब्रेस्ट फीडिंग- मेरा अनुभव


ब्रेस्ट फीडिंग (स्तनपान) को लेकर बहुत पहले रेडियो पर एक ऐड सुना था, बच्चे को मां का पहला पीला गाढ़ा दूध ही पिलाएं। तब से ही लगता कि मां का दूध तो बच्चा पैदा होते ही आना शुरू हो जाता होगा।

सिज़ेरियन डिलीवरी के बाद जब खुद मां बनी, तो पता चला कि मेरे ब्रेस्ट में मिल्क आ ही नहीं रहा। इसके चलते पहले दिन से बेबी को ऊपर का दूध पिलाना पड़ा। डॉक्टर्स ने बताया कि ऑपरेशन के बाद ये आम है, 2-3 दिन तक मिल्क नहीं बनता।
बीच में कुछ मिल्क बना ज़रूर लेकिन तब बेबी उसे पीना नहीं सीख पा रहा था। 3-4 दिन में वो भी आना बंद हो गया। इस वजह से जब-जब बेबी को पाउडर मिल्क पिलाना पड़ता, खुद पर गुस्सा आता, बिना बात के रोना भी आता... भूख लगनी बंद हो गई, किसी भी काम में मन लगना भी बंद हो गया। नेट पर सर्च किया तो पता चला ये सब 'बेबी ब्लूज़' के लक्षण होते हैं, जो बाद में पोस्टपार्टम डिप्रेशन में बदल जाते हैं। मगर खुद को इसके पीछे का असली कारण पता था।
मिल्क बनने लगे इसके लिए जिसने-जिसने जो बताया, वो किया। जो खा सकते थे खाया, हाल ये कि कोई जहर पीने को बोले तो भी पी लें। ऊपर वाले कि मेहरबानी से समय के साथ 8-10 दिन में दूध बनने लगा और मेरा बेबी ब्रेस्टफीड भी करने लगा। तब कहीं जाकर मैंने राहत की सांस ली।
इस बीच मैंने अपनी बहनों, भाभियों और मां बन चुकी दोस्तों से इस बारे में बात करनी शुरू की। पता चला, मैं अकेली नहीं थी, जो इस समस्या से गुज़र रही थी। इनमें से कई तो अपने बच्चों को ब्रेस्ट फीड करा ही नहीं पाईं। उनके बच्चों ने हमेशा पाउडर मिल्क ही पिया।
मेरी डॉक्टर ने बताया था कि जिस तरह गाय को कभी दूध न बनने की समस्या नहीं होती ठीक उसी तरह मां बनने के बाद एक औरत भी नहीं बोल सकती कि उसे दूध नहीं बन रहा। ये प्रकृति का नियम है। बस हमें हार नहीं माननी है और लगातार कोशिश करनी है। मेरी कोशिश सफल हुई, उम्मीद है सबकी हो जाएगी।

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