क्यों न थोड़े मतलबी हो जाये...
सुबह ऑफिस जाने की जल्दी, दिनभर काम की
भागा-दौड़ी... कुछ याद है, परिवार संग यूँ ही गप्पे लड़ाते हुए आखिरी बार
कब चाय का प्याला हाथ मे लिया था... कभी टीवी तो कभी स्मार्ट फोन की दुनिया
मे मस्त, कुछ याद है आखिरी बार कब खुली हवा मे किसी अपने के साथ चंद पल
गुजारे थे...सबको खुश करने के फेर मे चेहरे पर बनावटी मुस्कान लिए, कुछ याद
है आखिरी बार कब सच्ची मुस्कुराहट को जिया था...
कुछ याद है आखिरी बार कब जिये थे, वो सुकून भरे पल... आखिरी बार कब हुए थे थोड़ा मतलबी...
अपने लिए थोड़ा समय निकालने को अगर लोग मतलबी होना कहते हैं तो . मैं मतलबी हूँ.
जवाब देंहटाएंसार्थक प्रस्तुति.
यहाँ भी आइए.
http://iwillrocknow.blogspot.in/
RYT
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर! इस रचना को पढ़कर मुझे वो गीत याद आ गया.
जवाब देंहटाएं"मतलबी....हो जा ज़रा मतलबी...दुनिया की सुनता है क्यों, अपनी भी सुन ले कभी"!!
hmmm... kabhi kabhi honaa bhi chahiye...
जवाब देंहटाएंAgree with you
जवाब देंहटाएंVishal....
Hmmmm... Right Sumit
जवाब देंहटाएंआदरणीया सुप्रिया जी
जवाब देंहटाएंकृपया अपने ब्लॉग को ब्लॉगसेतु ब्लॉग एग्रीगेटर से जोड़ने की कृपा करें. ताकि अधिक से अधिक पाठक आपके ब्लॉग तक पहुँच सकें. धन्यवाद.
यह रहा ब्लॉगसेतु का लिंक .....
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Zaroor
हटाएंwevr working as a Machine. No rest no time. But you will feel refresh after injoy.
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