रविवार, 16 फ़रवरी 2014

एक नई, मैं


निकल पड़ी हूँ आज,
खुद से खुद को मिलाने
धुंधली होती तस्वीर को,
एक बार फिर से उभारने
अकेली राहों में चलते हुए
खुद से कुछ पल चुराने...
साथ किसी का पाने,
की इच्छा लिए बगैर...
चल पड़ी हूँ आज
खुद से ही दोस्ती निभाने...
कोई दोस्त, कोई साथी,
आज रहना चाहती हूँ खुद के साथ
कुछ यादों को मिटाने 
तो कुछ नयी यादें बनाने...
जाने कैसा एहसास है यह 
जो कर रहा है हर किसी से दूर
अपनी ही नाराज़ परछाई को
चल पड़ी हूँ आज मनाने...
खुशियों की सेज पर जिसके निशां हुआ करते थे
ढूढ़ रही हूँ आज, वो रास्ते पुराने 
निकल पड़ी हूँ आज एक नई, मैं को जानने