गुरुवार, 7 मार्च 2013

"कुत्ते तेरे घर में माँ बहन नहीं है क्या"

प्यार के लिए सिर्फ एक दिन valentines day काफी नहीं होता, दोस्ती के लिए एक दिन Friendship day  भी कम पड़ जाता है, तो महिलाओं की इज्ज़त करने के लिए मात्र एक दिन Womens Day ही क्यों? क्यों हर दिन उनकी इज्ज़त नहीं की जा सकती। कल 8 मार्च को महिला दिवस है और आज दिल्ली में 24 घंटे के अन्दर बलात्कार के 7 मामले सामने आये, हर अख़बार और न्यूज़ चैनल में यही छाया हुआ है की फिर शर्मसार हुई दिल्ली। सिर्फ दिल्ली ही नहीं महाराष्ट्रा,उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड यूँ कह ले की पूरे देश में आज बलात्कार करना तो जैसे वीरता साबित करने का एक तमगा बन गया है। 

कुछ दिन पहले सरकार ने महिलाओं के लिए एक अलग बैंक खोलने का एलान कर दिया। पर क्या सिर्फ इतने भर से उनकी ज़िम्मेदारी पूरी हो जाती है। जबकि मुझे नहीं लगता किसी भी बैंक में महिलाओं को किसी भी असुविधा का सामना करना पड़ता है, हां  बैंक तक पहुँचते पहुँचते ज़रूर कई दिक्कतों से रूबरू होना पड़ता है। मसलन लड़कों का पीछे पड़ जाना, उनके द्वारा अपने ऊपर कमेंट्स पास होना, और भी बहुत कुछ जिसे समझने के लिए लड़की होना ज़रूरी है। 

फिल्मों का एक बहुत पुराना डायलाग है, "कुत्ते तेरे घर में माँ बहन नहीं है क्या". पर आज यही माँ बहन गाली का रूप बन गयी है। तेरी माँ की, तेरी बहन की जैसी भाषा तो आम बात है। पर बात जब अपनी माँ और अपनी बहन की आती है तो बन जाते है बॉडीगार्ड। क्यूंकि अपनी नस्ल तो हर कुत्ता पहचानता है। फिर क्यूँ किसी और लड़की पर हर समय नियत ख़राब रहती है। क्यूँ उसकी इज्ज़त से खिलवाड़ करते समय अपने घर की इज्ज़त याद नहीं रहती। क्यूँ इनकी नींव घर से ही मजबूत नहीं की जाती। क्यूँ एक माँ अपने बेटे को लड़कियों की इज्ज़त नहीं सिखा पाती। क्यूँ सरकार इनके खिलाफ़ कभी कोई कड़े कदम नहीं उठा पाती। 

सवाल तो बहुत है पर इनके जवाब किसी के भी पास नहीं है। हर साल 8 मार्च आयेगा और उसी के साथ हर साल बलात्कार के मामले भी बढ़ते जायेगे। मगर इंसाफ कभी भी हाथ नहीं आयेगा। 

 

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